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सड़क में घूम रहे आवारा पशुओं की समस्या से छुटकारा दिलाने एनएसयूआई ने सौंपा ज्ञापन

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सूरजपुर,वर्तमान में सड़कों पर आवारा पशुओं के जमा होने की समस्या काफी बढ़ती जा रही है दिन- प्रतिदिन दुर्घटनाएं हो रही है इसी के संबंध में एनएसयूआई के जिलाध्यक्ष आकाश साहू ने जिला कलेक्टर को ज्ञापन सौंपकर सड़कों पर घूम रहे आवारा पशुओं की समस्या के समाधान करने की मांग की आकाश साहू ने बताया कि सूरजपुर जिले में वर्तमान में आवारा पशु एक बहुत बड़ी समस्या बन गई है पशु मालिकों के द्वारा जो पशु कृषि उपयोगी नहीं है या दूध नहीं देते है उन्हें रोड में आवारा स्थिति में छोड़ दिया जाता है जिससे एन. एच. 43 एवं अन्य प्रमुख मार्गों में झुंड बनाकर खड़े रहते है या बैठे रहते है जिससे आवागमन पूरी तरह से बाधित रहता है एवं आय दिन दुर्घटना की संभावना बनी रहती है और भी दुर्घटना बनी रहती है संबंधित विभाग,नगर पालिका,नगर पंचायत,पशु विभाग एवं अन्य कोई संस्थान इस ओर कोई ध्यान नहीं देते है कई बार शिकायतों के बावजूद भी स्थिति जश की तश है पूर्व में कांग्रेस सरकार द्वारा लगभग प्रत्येक ग्राम पंचायतो में गौठान बनवाया गया है लेकिन उसके पश्चात भी उन गौठानों का कोई उपयोग नहीं किया जा रहा है गौठानों की स्थिति भी दयनीय हो गई है एनएसयूआई ने इस दिशा में ठोस एवं सकारात्मक कदम उठाने की मांग की है इस दौरान एनएसयूआई के रुद्र प्रताप सिंह,शिवम साहू,प्रदेश सह सचिव लिवनेश सिंह,रेहान,विष्णु साहू,सोमू खान एवं अन्य कार्यकर्ता उपस्थित थे..


मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में बस्तर में गूंज रही है विकास की आवाज – ‘नियद नेल्ला नार’ से शासन पहुँचा विश्वास के द्वार तक

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नियद नेल्ला नार’ बना सुशासन का जीवंत प्रमाण: जहाँ कभी बंदूकें थीं, वहाँ अब किताबें हैं – बस्तर में भय से विश्वास की ओर बढ़ती नई सुबह

रायपुर, छत्तीसगढ़ के बस्तर अंचल के वे सुदूरवर्ती गाँव, जो वर्षों तक विकास की मुख्यधारा से कटे रहे, आज नई उम्मीदों और उजालों की ओर अग्रसर हैं। जहाँ कभी बिजली, सड़क, स्कूल, स्वास्थ्य सेवाएँ और संचार जैसी बुनियादी सुविधाओं का अभाव था, वहीं अब वही गाँव प्रगति के रास्ते पर तेज़ी से बढ़ रहे हैं। इस बदलाव की नींव मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के दूरदर्शी नेतृत्व और जन सरोकारों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के परिणामस्वरूप 15 फरवरी 2024 को ‘नियद नेल्लानार – आपका आदर्श ग्राम योजना’ के रूप में रखी गई। यह योजना उन क्षेत्रों तक शासन की संवेदनशील और सक्रिय पहुँच सुनिश्चित करने का क्रांतिकारी प्रयास है, जहाँ अब तक केवल उपेक्षा और प्रतीक्षा का सन्नाटा था।

मुख्यमंत्री श्री साय का स्पष्ट मानना रहा है कि केवल सुरक्षा शिविर स्थापित कर देना पर्याप्त नहीं, जब तक वहाँ शासन की संवेदनशील उपस्थिति और समग्र विकास की किरण नहीं पहुँचे। इसी सोच के साथ बस्तर के पाँच नक्सल प्रभावित जिलों—सुकमा, बीजापुर, नारायणपुर, दंतेवाड़ा और कांकेर—में 54 नए सुरक्षा शिविर स्थापित किए गए। इन शिविरों के 10 किलोमीटर के दायरे में आने वाले 327 गाँवों को चिन्हित कर यह निर्णय लिया गया कि इन सभी को शत-प्रतिशत योजनाओं से जोड़ते हुए एक नया विकास मॉडल प्रस्तुत किया जाएगा।

इस पहल के साथ ही गाँवों में बदलाव की हवा बहने लगी है। शिक्षा के क्षेत्र में सरकार ने 31 नए प्राथमिक विद्यालयों की स्वीकृति दी, जिनमें से 13 स्कूलों में कक्षाएँ शुरू हो चुकी हैं। 185 आंगनबाड़ी केंद्रों की स्थापना को स्वीकृति दी गई, जिनमें से 107 पहले ही प्रारंभ हो चुके हैं, जिससे बच्चों को पोषण और प्रारंभिक शिक्षा की सुविधा मिलने लगी है। स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में 20 उप-स्वास्थ्य केंद्र स्वीकृत किए गए, जिनमें से 16 स्वास्थ्य केंद्र प्रारम्भ हो चुके हैं। ये वही गाँव हैं जहाँ पहले एक सामान्य दवा के लिए भी लोगों को मीलों जंगल पार करना पड़ता था।

मुख्यमंत्री श्री साय के नेतृत्व में संचार और संपर्क साधनों को विशेष प्राथमिकता दी गई है। पहले जहाँ मोबाइल सिग्नल का नामोनिशान नहीं था, वहाँ अब 119 मोबाइल टावरों की योजना बनी और 43 टावर कार्यशील हो चुके हैं। 144 हाई मास्ट लाइट्स की मंजूरी दी गई, जिनमें से 92 गाँवों में अब रात के अंधेरे में उजियारा फैलने लगा है। सड़क और पुल निर्माण के लिए 173 योजनाएँ बनाई गईं, जिनमें से 116 को स्वीकृति मिल चुकी है और 26 कार्य पूर्ण हो चुके हैं। यह विकास केवल अधोसंरचना तक सीमित नहीं है, बल्कि यह एक भावनात्मक जुड़ाव और पहचान का सशक्त माध्यम बन चुका है। आर्थिक और सामाजिक सशक्तिकरण के क्षेत्र में भी उल्लेखनीय प्रगति हुई है। अब तक 70,954 लोगों के आधार कार्ड बनाए जा चुके हैं, 46,172 वृद्धजनों को आयु प्रमाण-पत्र जारी किए गए हैं और 11,133 नागरिकों का मतदाता पंजीकरण हुआ है, जिससे वे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भागीदार बन पाए हैं। 46,172 लोगों को आयुष्मान कार्ड जारी कर मुफ्त इलाज की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। प्रधानमंत्री आवास योजना के अंतर्गत 12,232 मकानों का लक्ष्य तय किया गया है, जिनमें से 5,984 परिवारों को स्वीकृति मिल चुकी है। किसान सम्मान निधि योजना के तहत 4,677 किसानों को सहायता राशि प्रदान की गई है। स्वच्छ भारत मिशन के अंतर्गत 6,460 घरों में व्यक्तिगत शौचालय बनाए गए हैं। रसोई को धुएँ से मुक्त करने के उद्देश्य से 18,983 महिलाओं को उज्ज्वला और गौ-गैस योजना के तहत गैस कनेक्शन प्रदान किए गए हैं। 30 गाँवों में डीटीएच कनेक्शन भी दिए गए हैं, जिससे ये गाँव अब सूचना और मनोरंजन के मुख्य प्रवाह से जुड़ चुके हैं।

यह परिवर्तन मात्र योजनाओं का संकलन नहीं है, बल्कि शासन और जनता के बीच एक नए भरोसे का रिश्ता है, जिसकी बुनियाद सहभागिता और पारदर्शिता पर टिकी है। वर्षों तक शासन से कटे रहे लोग अब स्वयं विकास की निगरानी में सहभागी बन रहे हैं। अब ग्रामीण स्वयं आंगनबाड़ी की उपस्थिति पंजी, राशन दुकान की गुणवत्ता और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन की निगरानी कर रहे हैं। यह वही बस्तर है, जो भय से विश्वास और उपेक्षा से भागीदारी की ओर बढ़ चला है।

मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय की इस दूरदर्शिता ने एक बार फिर यह सिद्ध किया है कि सुशासन केवल घोषणाओं से नहीं, बल्कि जमीनी क्रियान्वयन से आता है। ‘नियद नेल्लानार’ केवल एक योजना नहीं, बल्कि यह बस्तर के पुनर्जागरण की यात्रा है—एक ऐसी यात्रा जिसमें बंदूक की जगह अब किताबें हैं, अंधेरे की जगह उजियारा है और असहमति की जगह अब सहभागी लोकतंत्र की भावना है।


जर्नलिस्ट काउंसिल आफ इंडिया ने ई पेपर की मान्यता के लिये लोकसभा अध्यक्ष को भेजा पत्र

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ई पेपर की मान्यता की मांग को लोकसभा की कमेटी में रखने के लिए भेजा गया है पत्र

ई पेपर की वैधानिक मान्यता की मांग को लोकसभा की कमेटी में रखने के लिए जर्नलिस्ट काउंसिल ऑफ इंडिया (रजि) संगठन ने लोक सभा अध्यक्ष को पत्र भेजकर अनुरोध किया है।संगठन के राष्ट्रीय अध्यक्ष डाॅ० अनुराग सक्सेना ने भेजे अपने पत्र मे कहा है कि ई-पेपर से कई लाभ हो सकते हैं जैसे ई-पेपर कहीं भी और कभी भी पढ़ने की सुविधा प्रदान करता है। ई पेपर पर्यावरण के भी अनुकूल है। ई-पेपर पेपरलेस होने के कारण पर्यावरण को बचाने में मदद करता है। सरकार सब कुछ पेपर लैस करने पर जोर दे रही है लेकिन ई पेपर की मान्यता को लेकर गंभीर नही है।
वर्तमान समय में बढ़ती महंगाई, कागज की दर में वृद्धि होने के साथ ही साथ सरकार द्वारा किसी भी प्रकार का आर्थिक सहयोग न मिलने से समाचार पत्र की छपाई बहुत महंगी पड़ रही है। इसके चलते लघु और मध्यम श्रेणी के समाचार पत्र बंद होने की कगार पर पहुंच चुके हैं। वर्तमान समय में डिजिटिलाइजेशन के दौर में सरकार हर कार्य को कागज रहित करने पर जोर दे रही है। ऐसे में जो छोटे व्यापारी अपना विज्ञापन इन समाचार पत्रों को देते थे, वह भी लगभग बंद हो गये हैं। ऐसे में प्रकाशित समाचार पत्र को प्रसारित करने में भी इन समाचार पत्रों के प्रकाशकों को बड़ी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। डिजिटल युग में जहां ई पेपर बड़ी आसानी से बहुत बड़े क्षेत्र में प्रसारित हो जाता है वहीं ई पेपर के माध्यम से प्रकाशक अपने समाचार पत्रों को जिंदा रखे हुए हैं।
उपरोक्त समस्या के समाधान के लिए संगठन ने लोकसभा अध्यक्ष से अनुरोध किया है कि यदि आर एन आई द्वारा ई पेपर को मान्यता प्रदान कर दी जाये तो इन समाचार पत्रों को जीवन दान मिल सकेगा। ई पेपर को मान्यता प्रदान करने की मांग को लोकसभा की कमेटी मे रखने का अनुरोध लोकसभा अध्यक्ष से किया है।


वन-परिक्षेत्र रामानुजनगर की बड़ी लापरवाही क्या एक बड़ा हादसा होने से बचा ?

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सूरजपुर जिले के वन परिक्षेत्र रामानुजनगर में वन विभाग के द्वारा पेड़ों की कटाई करते वक्त एक पेड़ सड़क किनारे एक घर पर जा गिरा जिस कारण से घर का रेलिंग और दीवार क्षतिग्रस्त हो गया !

इस तरह की लापरवाही से एक बड़ी हादसा होने की आशंका जताई जा रही है आखिर वन विभाग इतनी लापरवाह कैसे हो सकती है!

पीड़ित परिवार वन परिक्षेत्र रामानुजनगर के द्वारा की गई लापरवाही से जो नुकसान उनका हुआ है उसकी मुआवजा की मांग कर रही है और वन विभाग से इस तरह से लापरवाही दुबारा नहीं करने की अपील करती है !

अब देखना यह होगा कि आखिर पीड़ित परिवार का जो नुकसान हुआ है उसकी भरपाई वन विभाग कब तक करती है !


हमारी सरकार बेहतर स्वास्थ्य सेवा देने के लिए संकल्पित है – मुख्यमंत्री विष्णु देव साय

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मुख्यमंत्री श्री साय ने किया “रक्त-मित्र” पुस्तिका का विमोचन, रेडक्रॉस के आजीवन सदस्यों को किया सम्मानित

रायपुर, मुख्यमंत्री श विष्णु देव साय ने कहा है कि रक्तदान एक पुनीत कार्य है, जो न केवल किसी जरूरतमंद को जीवनदान देता है, बल्कि मानवता के प्रति हमारी सेवा भावना का श्रेष्ठतम उदाहरण भी है। मुख्यमंत्री श्री साय आज जशपुर जिले के ग्राम बगिया में भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी द्वारा आयोजित कार्यक्रम को संबोधित कर रहे थे।

मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि “रक्त-मित्र” डायरेक्ट्री एक ऐतिहासिक और सराहनीय पहल है, जिसके माध्यम से कोई भी व्यक्ति समय पर रक्तदाताओं से सीधा संपर्क स्थापित कर सकता है। यह पहल जीवनरक्षक सहायता को सहज, सुलभ और समयबद्ध बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि मुझे यह देखकर अत्यंत प्रसन्नता हो रही है कि जशपुर जिले में हर वर्ग के नागरिक स्वैच्छिक रक्तदान और स्वास्थ्य जागरूकता कार्यक्रमों में सक्रिय भागीदारी कर रहे हैं और समाज सेवा में अपना बहुमूल्य योगदान दे रहे हैं। आज रक्तदाताओं को प्रमाण पत्र प्रदान करते हुए मैं स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर रहा हूँ, क्योंकि जीवनदान देने वाला व्यक्ति वास्तव में ईश्वर के समकक्ष होता है।

मुख्यमंत्री ने कहा कि हम सभी जानते हैं कि रक्त का हमारे जीवन में क्या महत्व है। सही समय पर उपयुक्त रक्त समूह का रक्त मिलने से किसी के प्राणों की रक्षा की जा सकती है, इसलिए रक्तदान को ‘महादान’ कहा गया है। राज्य में रेडक्रॉस सोसायटी के माध्यम से सर्वाधिक रक्तदान शिविरों का आयोजन किया जाता है, जो जनसेवा की उत्कृष्ट मिसाल है। मैं इस मंच से प्रदेशवासियों से आह्वान करता हूँ कि वे यथासंभव रक्तदान कर इस जीवनरक्षक कार्य में सहभागी बनें।

मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि प्रदेश में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार हेतु राज्य सरकार निरंतर प्रतिबद्ध है। हाल ही में हमने एम्बुलेंस सेवाओं को हरी झंडी दिखाकर त्वरित चिकित्सा सहायता सुनिश्चित करने की दिशा में ठोस पहल की है। उन्होंने कहा कि मैं सभी नागरिकों को यह आश्वस्त करना चाहता हूँ कि हमारी सरकार प्रत्येक व्यक्ति को गुणवत्तापूर्ण, सुलभ और त्वरित स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने के लिए संकल्पित है।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने कैम्प कार्यालय बगिया में आयोजित कार्यक्रम में भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी जशपुर के आजीवन सदस्यों को प्रमाण पत्र वितरित किए और “रक्त-मित्र” पुस्तिका का विमोचन किया। इस दौरान उन्होंने श्री नीरज शर्मा, श्री अजय कुमार कुशवाहा और श्री शिव नारायण सोनी को प्रमाण पत्र प्रदान कर उनके योगदान की सराहना की।

उल्लेखनीय है कि “रक्त-मित्र” डायरेक्ट्री, जिला प्रशासन एवं भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी, जिला जशपुर की एक अभिनव पहल है, जिसके अंतर्गत 480 स्वैच्छिक रक्तदाताओं के नाम एवं मोबाइल नंबर सूचीबद्ध किए गए हैं। इस डायरेक्ट्री के माध्यम से जब भी किसी मरीज को रक्त की आवश्यकता होगी, वह सीधे सूची में दिए गए नंबरों पर संपर्क कर रक्त प्राप्त कर सकता है।

इस प्रयास से रोगियों को इधर-उधर भटकने की आवश्यकता नहीं पड़ेगी और उन्हें समय पर रक्त मिल सकेगा। यदि कोई व्यक्ति या समाजसेवी “रक्त-मित्र” बनना चाहता है, तो वह डायरेक्ट्री में दिए गए QR कोड को स्कैन कर गूगल फॉर्म भर सकता है। साथ ही, कलेक्टर एवं अध्यक्ष, भारतीय रेडक्रॉस जिला मुख्यालय, जशपुर (कलेक्ट्रेट परिसर, कक्ष क्रमांक 122) में संपर्क कर भी “रक्त-मित्र” के रूप में पंजीयन कर सकता है।

इस गरिमामय कार्यक्रम में सरगुजा विकास प्राधिकरण की उपाध्यक्ष एवं पत्थलगाँव विधायक श्रीमती गोमती साय, जशपुर विधायक श्रीमती रायमुनी भगत, जिला पंचायत अध्यक्ष श्री सालिक साय, जिला पंचायत उपाध्यक्ष श्री शौर्य प्रताप सिंह जूदेव, नगर पालिका अध्यक्ष श्री अरविंद भगत, उपाध्यक्ष श्री यश प्रताप सिंह जूदेव, कलेक्टर श्री रोहित व्यास, वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक श्री शशि मोहन सिंह, डिप्टी कलेक्टर श्री हरिओम द्विवेदी, डिप्टी कलेक्टर श्री प्रशांत कुशवाहा, रेडक्रॉस सोसायटी के श्री रूपेश प्राणी ग्राही, अनेक जनप्रतिनिधि और बड़ी संख्या में आम नागरिक उपस्थित थे।


हरेली महोत्सव परंपरा और संस्कृति से सराबोर पारंपरिक खेल एवं नृत्य से गूंजा संतोषी चौक

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छत्तीसगढ़ के प्रथम त्योहार हरेली महोत्सव के शुभ अवसर पर दिनांक 24 जुलाई 2025 को जामुल के संतोषी चौक में एक भव्य आयोजन संपन्न हुआ। इस आयोजन का नेतृत्व श्रीमती रश्मि वर्मा (वार्ड 6), श्री संजय साहू (वार्ड 13) एवं श्रीमती दीपिका साहू द्वारा किया गया।

कार्यक्रम में महिलाओं एवं बच्चों की उत्साहजनक भागीदारी देखने को मिली। छत्तीसगढ़ की समृद्ध परंपरा को जीवंत करते हुए पारंपरिक खेल प्रतियोगिताएं एवं लोक नृत्य का आयोजन किया गया। आयोजन का उद्देश्य छत्तीसगढ़ी संस्कृति को बढ़ावा देना तथा बच्चों व नई पीढ़ी को इसकी विरासत से जोड़ना था।

खेल प्रतियोगिताओं के अंतर्गत विभिन्न पारंपरिक खेलों में बड़ी संख्या में महिलाओं एवं बच्चों ने भाग लिया। प्रतियोगिताओं के पश्चात कुल 75 विजेताओं को विशेष पुरस्कारों से सम्मानित किया गया।

नगर के नागरिकों ने भारी संख्या में उपस्थित होकर आयोजन को सफल बनाया और छत्तीसगढ़ी संस्कृति के इस उत्सव में अपनी सहभागिता सुनिश्चित की।

यह आयोजन न केवल सांस्कृतिक चेतना को जागृत करने वाला था, बल्कि छत्तीसगढ़ी गौरव को भी पुनः स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल साबित हुए


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भगवान भोले की कृपा बनी रहे और हमारा देश व छत्तीसगढ़ सतत् रूप से विकास, शांति और समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ता रहे : मुख्यमंत्री

रायपुर, सावन मास के पावन अवसर पर मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय ने अपनी धर्मपत्नी श्रीमती कौशल्या साय के साथ आज बगिया स्थित श्री फलेश्वरनाथ महादेव मंदिर पहुंचकर पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर प्रदेशवासियों के सुख-समृद्धि एवं खुशहाली की मंगलकामना की। इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने सुप्रसिद्ध कथा वाचिका किशोरी राजकुमारी तिवारी द्वारा किए जा रहे शिव महापुराण कथा का श्रवण भी किया।

इस अवसर पर मुख्यमंत्री ने कहा कि भगवान भोलेनाथ की कृपा सभी पर बनी रहे और हमारा देश और छत्तीसगढ़ सतत् रूप से विकास, शांति और समृद्धि की दिशा में आगे बढ़ता रहे। उन्होंने कहा कि भगवान श्री भोलेनाथ के आशीर्वाद से छत्तीसगढ़ सरकार राज्य के कल्याण के लिए समर्पित होकर कार्य कर रही है। हमारी सरकार की नई उद्योग नीति से आकर्षित होकर बीते छह से आठ महीनों में लगभग साढ़े छह लाख करोड़ रुपये के निवेश प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं। राज्य सरकार ने युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों के अवसर सृजित किए हैं।

इस अवसर पर फलेश्वरनाथ महादेव मंदिर परिसर में आयोजित 01 लाख 108 पार्थिव शिवलिंग निर्माण एवं विशेष पूजन अनुष्ठान श्रद्धा, आस्था और शास्त्रोक्त विधि-विधान के साथ संपन्न हुआ। यह आयोजन 22 जुलाई से प्रारंभ हुआ था और इसका समापन आज 24 जुलाई को विधिपूर्वक किया गया। पूरे आयोजन में बड़ी संख्या में श्रद्धालुजन उत्साहपूर्वक भाग ले रहे हैं। भक्तगण पूर्ण श्रद्धा, निष्ठा और भक्ति भाव से पार्थिव शिवलिंग निर्माण में सहभागी रहे। पूजन एवं अनुष्ठान का आयोजन प्रतिष्ठित विद्वान पंडितों द्वारा शास्त्र सम्मत विधियों के अनुसार किया गया, जिससे वातावरण भक्तिमय और आध्यात्मिक ऊर्जा से परिपूर्ण हो उठा। इस अवसर पर जिला पंचायत अध्यक्ष श्री सालिक साय, कमिश्नर श्री नरेंद्र दुग्गा, आईजी श्री दीपक कुमार झा, कलेक्टर श्री रोहित व्यास, पुलिस अधीक्षक श्री शशिमोहन सिंह, जिला पंचायत सीईओ श्री अभिषेक कुमार, जनप्रतिनिधिगण और भारी संख्या में ग्रामीण मौजूद रहे।


मुख्यमंत्री श्री साय, विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह, मंत्रीगण और जनप्रतिनिधियों ने की पूजा-अर्चना

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हरेली पर्व छत्तीसगढ़ की समृद्ध संस्कृति और प्रकृति से जुड़ाव का उत्सव है – मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय

हरेली पर्व किसान, खेत-खलिहान और गोधन की पूजा का अवसर है – विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह

हरेली पर्व हमारी धरती, परिश्रम और परंपरा के प्रति सम्मान का प्रतीक – उपमुख्यमंत्री श्री अरुण साव

हरेली पर्व हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है और कृषि संस्कृति को संरक्षित रखने की प्रेरणा देता है – राजस्व मंत्री श्री टंक 

रायपुर,छत्तीसगढ़ की समृद्ध लोकसंस्कृति और कृषि परंपरा से जुड़े पर्व हरेली के पावन अवसर पर राजस्व मंत्री के निवास कार्यालय में पारंपरिक उल्लास और श्रद्धा के साथ कार्यक्रम आयोजित किया गया।

मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय ने कार्यक्रम में सम्मिलित होकर भगवान शिव का जलाभिषेक किया, साथ ही गौरी-गणेश, नवग्रहों और कृषि यंत्रों की विधिवत पूजा-अर्चना कर प्रदेशवासियों की खुशहाली की कामना की। इस अवसर पर विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह, उपमुख्यमंत्री द्वय श्री अरुण साव और श्री विजय शर्मा, महिला एवं बाल विकास मंत्री श्रीमती लक्ष्मी राजवाड़े, रायपुर की महापौर श्रीमती मीनल चौबे सहित अनेक जनप्रतिनिधि उपस्थित रहे।

मुख्यमंत्री श्री साय ने कहा कि हरेली पर्व छत्तीसगढ़ की जीवनशैली, मेहनतकश किसानों की आस्था और प्रकृति के प्रति सम्मान का प्रतीक है। हमारी सरकार किसानों के कल्याण, ग्रामीण अर्थव्यवस्था के उत्थान और पारंपरिक मूल्यों को संरक्षित रखने के लिए निरंतर प्रयासरत है। बच्चों में गेड़ी जैसी पारंपरिक विधाओं के प्रति आकर्षण बनाए रखना हमारी सांस्कृतिक विरासत की रक्षा है। हमें चाहिए कि हम ऐसे पर्वों के माध्यम से अपनी नई पीढ़ी को भी छत्तीसगढ़ी संस्कृति से जोड़ें।

विधानसभा अध्यक्ष डॉ. रमन सिंह ने कहा कि हरेली पर्व किसान, खेत-खलिहान और गोधन की पूजा का पर्व है। मान्यता है कि आज के दिन शिव-पार्वती स्वयं भू-लोक में आकर किसानों की खेती-किसानी को देखने आते हैं। हरेली से ही छत्तीसगढ़ में त्योहारों की श्रृंखला की शुरुआत होती है।

उपमुख्यमंत्री श्री अरुण साव ने कहा कि हरेली छत्तीसगढ़ की आत्मा से जुड़ा पर्व है। यह हमारी धरती, परिश्रम और परंपरा के प्रति सम्मान का प्रतीक है। यह पर्व हमारे किसानों की आस्था और प्रकृति के साथ उनके गहरे संबंध को दर्शाता है।

राजस्व मंत्री श्री टंक राम वर्मा ने कहा कि राज्य सरकार किसानों के हित में निरंतर कार्य कर रही है। हरेली जैसे पर्व हमें हमारी जड़ों से जोड़ते हैं और कृषि संस्कृति को जीवंत रखने की प्रेरणा देते हैं। इस पर्व में गेड़ी चलाने की प्रतियोगिता बच्चों के लिए विशेष आकर्षण का केंद्र रहती है। साथ ही गोधन को पौष्टिक आहार देकर ग्रामीणजन पशुधन के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं।

इस अवसर पर पारंपरिक वाद्य यंत्रों की धुन, छत्तीसगढ़ी लोक गीतों की प्रस्तुति, गेड़ी चढ़ने की प्रतियोगिता और लोकनृत्यों ने पूरे माहौल को जीवंत कर दिया। कार्यक्रम स्थल छत्तीसगढ़ी संस्कृति और लोकपरंपरा की झलक से सराबोर हो गया। कार्यक्रम में पारंपरिक कृषि औजारों की पूजा कर प्रकृति और कृषि परंपरा के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त की और छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सहेजने का संकल्प दोहराया।


हरेली की सुग्घर परंपरा के रंग में रंगा मुख्यमंत्री निवास

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सरगुजिहा कला पर केंद्रित सजावट में बस्तर और मैदानी छत्तीसगढ़ की भी सुंदर झलक

सावन झूला, गेड़ी नृत्य और कृषि यंत्रों की प्रदर्शनी से सजा हरेली का कार्यक्रम

रंग-बिरंगी छोटी गेड़ियों, नीम और आम पत्तियों की झालर से आकर्षक बना कार्यक्रम मंडप

रायपुर, छत्तीसगढ़ की परंपरा में “हरेली” मानव और प्रकृति के जुड़ाव को नमन करने का उत्सव है। हरेली आती है तो छत्तीसगढ़ के खेत-खलिहान, गाँव-शहर, हल और बैल, बच्चे-युवा-महिलाएँ सभी इस पर्व के हर्षोल्लास से भर जाते हैं। जिस हरेली पर्व से छत्तीसगढ़ में त्योहारों की शुरुआत होती है, उसके स्वागत में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री निवास के द्वार भी सज गए हैं। पूरा मुख्यमंत्री निवास श्रावण अमावस्या को मनाये जाने वाले हरेली पर्व की सुग्घर परंपरा के रंग में रंग गया है।

हरेली पर मुख्यमंत्री निवास की सजावट के तीन प्रमुख हिस्से हैं। प्रवेश द्वार, मध्य तोरण द्वार और मुख्य मंडप। प्रवेश द्वार में बस्तर के मेटल आर्ट की झलक है। इस द्वार पर लोगों के स्वागत में छत्तीसगढ़ का पारम्परिक वाद्य तुरही के मध्य में भगवान गणेश की प्रतिकृति है और मेटल आर्ट का घोड़ा भी उकेरा गया है।

प्रवेश द्वार के बाद मध्य में तोरण द्वार है जिसे पारम्परिक टोकनी से सजाया गया है। साथ ही रंग-बिरंगी छोटी झंडियाँ तोरण के रूप में शोभा बढ़ा रही हैं। इस हिस्से में नीम और आम पत्तों की झालर को हरेली की परम्परा के प्रतीक के रूप में लगाया गया है। पूरी सजावट का मुख्य आकर्षण वे छोटी-छोटी रंग-बिरंगी गेड़ियां हैं, जिनका सुंदर स्वरूप यहां से मुख्य मंडप तक हर जगह दिखता है।

मुख्य मंडप द्वार को सरगुजा की कला के रंगों से आकर्षक बनाया गया है। इस द्वार की छत को पैरा से छाया गया है और सरगुजिहा भित्ति कला का के मनमोहक चित्र बनाये गए हैं। कई रंगों से सजा बैलगाड़ी का चक्का भी इस द्वार की रौनक बढ़ा रहा है।

मुख्य कार्यक्रम मंडप के बाएँ हिस्से में छत्तीसगढ़ के ग्रामीण परिवेश का पारम्परिक घर बना है। इस घर के आहते को मैदानी छत्तीसगढ़ की चित्रकला से सजाया गया है। घर के आँगन में तुलसी चौरा और गौशाला है, जहाँ हल, कुदाल, रापा, गैती, टंगिया, सब्बल जैसे पारम्परिक कृषि यंत्र के साथ ही गोबर के उपले रखे हैं। इस ग्रामीण घर की दीवारों को सरगुजा की रजवार पेंटिंग के सुंदर चित्रों से सजाया गया है।

कार्यक्रम मंडप में कृषि यंत्रों की प्रदर्शनी मुख्य आकर्षण है। खास बात यह है कि इस प्रदर्शनी में पारम्परिक और आधुनिक कृषि यंत्रों को एक साथ प्रदर्शित किया गया है। पैडी सीडर, जुड़ा, बियासी हल, तेंदुआ हल और ट्रैक्टर जैसे यंत्र प्रदर्शित हैं।

मंडप में एक ओर पारंपरिक छत्तीसगढ़ी व्यंजनों के जलपान का हिस्सा है तो वहीं सावन का झूला भी सावन के फुहारों भरे मौसम के आंनद को दर्शाता है। छत्तीसगढ़ का पारम्परिक रहचुली झूला भी आकर्षण का केंद्र है।

संस्कृति की छटा बिखेरते पारम्परिक नृत्य :

हरेली के अवसर पर मुख्यमंत्री निवास में गेड़ी नृत्य और राउत नाचा जैसे पारम्परिक लोक नृत्य की छटा भी मनमोहक धुनों के साथ बिखर रही है। गेड़ी नृत्य के लिए बिलासपुर से दल आमंत्रित किया गया है। गेड़ी नृत्य के दल ने वेशभूषा में परसन वस्त्र के साथ सिर पर सीकबंद मयूर पंख का मुकुट, कौड़ी व चिनीमिट्टी से बनी माला और कौड़ी जड़ित जैकेट पहन रखा है। यह दल माँदर, झाँझ, झुमका, खँजरी, हारमोनियम और बाँसुरी की मधुर धुन में अपनी प्रस्तुति दे रही है। ग़ौरतलब है कि गेड़ी नृत्य की शुरुआत हरेली के दिन से होती है।
हरेली के मौके पर मुख्यमंत्री निवास में गड़बेड़ा (पिथौरा) से राउत नाचा के लिए 50 लोगों का दल पहुँचा है। इस दल में पुरुषों ने जहाँ धोती-कुर्ता के साथ सिर पर कलगी लगी पगड़ी, कौड़ी जड़ित बाजूबंद और पेटी के साथ पैरों में घुँघरू पहना है तो महिलाएँ भी पारम्परिक श्रृंगारी करके पहुँची हैं। इन दोनों ही दलों के सदस्यों ने बताया कि उन्हें इस मौक़े पर मुख्यमंत्री निवास पहुँचने का बेसब्री से इंतज़ार रहता है।


मुख्यमंत्री निवास में हरेली उत्सव: छत्तीसगढ़ी परंपराओं की झलक, पारंपरिक कृषि यंत्रों के साथ बिखरी सांस्कृतिक छटा

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रायपुर,छत्तीसगढ़ी लोकजीवन की खुशबू लिए हरेली तिहार का पारंपरिक उत्सव आज मुख्यमंत्री श्री विष्णुदेव साय के निवास में विधिवत रूप से आरंभ हुआ। छत्तीसगढ़ एक ऐसा प्रदेश है, जहाँ प्रत्येक अवसर और कार्य के लिए विशेष प्रकार के पारंपरिक उपकरणों एवं वस्तुओं का उपयोग होता आया है। हरेली पर्व के अवसर पर मुख्यमंत्री निवास कार्यालय में ऐसे ही पारंपरिक कृषि यंत्रों एवं परिधानों की झलक देखने को मिली, जो छत्तीसगढ़ की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की अमूल्य धरोहर हैं।

काठा

सबसे बाईं ओर दो गोलनुमा लकड़ी की संरचनाएँ रखी गई थीं, जिन्हें ‘काठा’ कहा जाता है। पुराने समय में जब गाँवों में धान तौलने के लिए काँटा-बाँट प्रचलन में नहीं था, तब काठा से ही धान मापा जाता था। सामान्यतः एक काठा में लगभग चार किलो धान आता है। काठा से ही धान नाप कर मजदूरी के रूप में भुगतान किया जाता था।

खुमरी

सिर को धूप और वर्षा से बचाने हेतु बांस की पतली खपच्चियों से बनी, गुलाबी रंग में रंगी और कौड़ियों से सजी एक घेरेदार संरचना ‘खुमरी’ कहलाती है। यह प्रायः गाय चराने वाले चरवाहों द्वारा सिर पर धारण की जाती है। पूर्वकाल में चरवाहे अपने साथ ‘कमरा’ (रेनकोट) और खुमरी लेकर पशु चराने निकलते थे। ‘कमरा’ जूट के रेशे से बना एक मोटा ब्लैंकेट जैसा वस्त्र होता था, जो वर्षा से बचाव के लिए प्रयुक्त होता था।

कांसी की डोरी

यह डोरी ‘कांसी’ नामक पौधे के तने से बनाई जाती है। पहले इसे चारपाई या खटिया बुनने के लिए ‘निवार’ के रूप में प्रयोग किया जाता था। डोरी बनाने की प्रक्रिया को ‘डोरी आंटना’ कहा जाता है। वर्षा ऋतु के प्रारंभ में खेतों की मेड़ों पर कांसी पौधे उग आते हैं, जिनके तनों को काटकर डोरी बनाई जाती है। यह डोरी वर्षों तक चलने वाली मजबूत बुनाई के लिए उपयोगी होती है।

झांपी

ढक्कन युक्त, लकड़ी की गोलनुमा बड़ी संरचना ‘झांपी’ कहलाती है। यह प्राचीन समय में छत्तीसगढ़ में बैग या पेटी के विकल्प के रूप में प्रयुक्त होती थी। विशेष रूप से विवाह समारोहों में बारात के दौरान दूल्हे के वस्त्र, श्रृंगार सामग्री, पकवान आदि रखने के लिए इसका उपयोग किया जाता था। यह बांस की लकड़ी से निर्मित एक मजबूत संरचना होती है, जो कई वर्षों तक सुरक्षित बनी रहती है।

कलारी

बांस के डंडे के छोर पर लोहे का नुकीला हुक लगाकर ‘कलारी’ तैयार की जाती है। इसका उपयोग धान मिंजाई के समय धान को उलटने-पलटने के लिए किया जाता है।