जितेंद्र सिंह नेगी को सहारा मीडिया प्रबंधन ने टर्मिनेट कर दिया है, इस पर 2013 की शारदा चिटफड कांड की याद करते हुए बहुत रोचक लेख लिखा गया है जाने: क्रोनी केप्टिलिजम और मीडिया

by UBC 24 News

नेगी को कंपनी के सारे सामान लौटाने को कहा गया है. उन्हें एक महीने की सीटीसी के बराबर साठ हजार रुपये का चेक भी सौंप दिया गया है.

जितेंद्र सिंह नेगी को सहारा मीडिया प्रबंधन ने टर्मिनेट कर दिया है. नेगी राष्ट्रीय सहारा देहरादून के रेजीडेंट एडिटर हैं. सहारा इंडिया मास कम्युनिकेशन की तरफ से एचआर द्वारा जारी एक पत्र में कहा गया है कि प्रबंधन का नेगी पर से भरोसा उठ गया है इसलिए ऐसी हालत में सेवा शर्तों के तहत टर्मिनेट किया जाता है.

नेगी को कंपनी के सारे सामान लौटाने को कहा गया है. उन्हें एक महीने की सीटीसी के बराबर साठ हजार रुपये का चेक भी सौंप दिया गया है.

क्रोनी केप्टिलिजम और मीडिया– एक शब्द बार-बार मीडिया में पिछले कुछ सालों से उछाला जा रहा है वह शब्द है क्रोनी कैपिटलिज्म । इसमें दो शब्द है, पहला क्रोनी । यह आप सब जानते हैं। दूसरा है, कैपिटलिज्म । क्रोनी कैपिटलिज्म में मीडिया क्रोनी है। आज वह पूँजीवाद का घनिष्ठ मित्र हो गया है। यह स्थिति है आज के मीडिया की। गौर करें, अप्रैल 2013 में शारदा चिट फंड जब कॉलेप्स हो गई तो उस वक्त एक खबर आई, बीच में फिर गायब हो गई। खबर थी, सात सौ पत्रकार नौकरी से निकाले गए। यह खबर प्रभावित करनेवाली थी, क्योंकि अक्तूबर 2005 से तब तक 10,000 पत्रकारों की नौकरी गई थी और इसकी कोई रिपोर्टिंग भी नहीं हुई थी। नौकरियाँ लेनेवालों
में केवल इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ही नहीं, प्रिंट मीडिया भी शामिल था। उस दिन एन. डी.टी.वी. ने एक इमोशनल स्टोरी की। ये पत्रकार अब क्या करेंगे, इनका ई.एम.आई. है। इनके बच्चे स्कूल जाते हैं। अब इनका घर कैसे चलेगा ?
यह सब उसी एन.डी.टी.वी. में चल रहा था, जिसने उसी महीने एन.डी.टी.वी.
प्रोफिट से 80 कर्मचारियों को तो एन.डी.टी.वी. से 70 लोगों को बाहर निकाला था। डेढ़ सौ लोगों की नौकरी गई, एन.डी.टी.वी. के एक मुंबई ऑफिस से। अक्तूबर 2008 में जब फाइनेंशियल कॉलेप्स हुआ, उस वक्त से बहुत सारी तब्दीलियाँ आई हैं। मीडिया में भ्रष्टाचार तो पुरानी चीज है। कुछ नई चीज नहीं है। बुरी पत्रकारिता भी पुरानी चीज है। कंटेंट ऑफ जर्नलिज्म का एक उदाहरण 2013 में उत्तराखंड में आई तबाही के दौरान देखने को मिला, जब एक पत्रकार एक त्रासदी पीड़ित के कंधे पर बैठकर रिपोर्टिंग कर रहा था। अगर पीड़ित पत्रकार के कंधे पर बैठता तो ठीक था, लेकिन उस रिपोर्ट में मीडिया के परजीवी होने का संकेत साफ नजर आया। संवेदनशीलता का क्षरण भी दिखा। 20 साल पहले जब हम मीडिया मोनोपॉली कहते थे तो साहू और जैन जैसे मीडियापतियों का अखबार तीन-चार शहरों से निकलता था। भारत ऐसा देश है, जहाँ दो
शहरों से अगर अखबार निकलता है तो उसे नेशनल प्रेस का दर्जा मिल जाता है, लेकिन मोनोपॉली क्या थी? ‘इंडियन एक्सप्रेस’ के मालिक थे रामनाथ गोयनका साहू और जैन मालिक रहे। यह मोनोपॉली अब खत्म हो गई है। आज मीडिया मोनोपॉली का मतलब कॉरपोरेट मोनोपॉली के अंदर मीडिया एक छोटा डिपार्टमेंट बनकर रह गया है। आज
सबसे बड़ा मीडिया मालिक कौन है ? सहज तौर पर मुकेश अंबानी का नाम सामने आता है। वैसे मीडिया मुकेश अंबानी का मुख्य कारोबार नहीं है। यह उनके बड़े कारोबार का एक छोटा सा हिस्सा है। मुकेश अंबानी ने जब कुछ साल पहले नेटवर्क 18 को खरीदा तो खुद उनको यह नहीं पता था कि उन्होंने क्या खरीदा है? इसके अलावा 22 चैनल आए इनाडू की खरीददारी से। तेलुगू चैनल छोड़कर सब बिक गए। इनाडू मीडिया में अच्छा नाम है, लेकिन इनाडू के अब असली मालिक हैं मुकेश अंबानी । इनाडू का चैनल देखिए, वे कोल स्कैम, कैश स्कैम को कैसे कवर कर रहे थे? इनाडू का फुल बुके मुकेश अंबानी का है। टी.वी. 18 का फुल बुके मुकेश अंबानी का है। दरअसल, यह है उनकी मीडिया
मोनोपॉली। अब इस दौर में हम रामनाथ गोयनका की मोनोपॉली की तुलना मुकेश अंबानी की एक छोटी सी दुकान से भी नहीं कर सकते।(यह निजी विचार हैं व पूर्व घटनाओं कि यादगार है)

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