पुरुष शोषण :-“कानूनी अधिकारों का दुरुपयोग करती महिलाये”
समय रुकता नहीं है वह अनवरत चलता रहता है एक पल में आगे निकल जाता है और समय की इस तेज रफ्तार के सामने वेदनायें-संवेदनाएं, प्यार, मोहब्बत, रिश्तें नाते जैसे लफ्ज़ कहीं पीछे छूट जा रहे हैं, शायद यही वजह है कि महिलाओं का शोषण रोकने के लिए कानून द्वारा उन्हें जो विशेषाधिकार प्राप्त आज महिलायें उनका ही दुरुपयोग कर अपने पति व ससुराल पक्ष को फँसाने में लगी है। कहा जाता है भले ही सौ गुनाहगार छूट जाए मगर एक बेगुनाह को सजा नहीं होनी चाहिये। फैमिली कोर्ट में ऐसे बहुत से हादसे हैं जिसमें आरोपी पति दुखी होकर आत्महत्या कर लेते हैं या मानसिक संतुलन खोकर पागल खाने चले जाते हैं। आखिर यह घटनायें क्यों होती है? क्या इसलिए कि महिलाओं की संवेदनशीलता मरती जा रही है। नारी मुक्ति के नाम पर उनमें चेतना कम कठोरता ज्यादा जागी है! अपने अधिकारों के ज्ञान का प्रयोग अपनी रक्षा के लिए ना करके मात्र छोटे-मोटे सुखों की खातिर अपने ही पति को मानसिक दुःख देने के लिए तत्पर है, क्या वह अपनी सहनशक्ति की प्रतिमूर्ति या ममता की देवी की छवि से इतनी आसक्त हो गई है कि उसे तोड़ने के लिए निर्ममता की सारी हदें पार कर देती है या फिर यह भी नारी का एक छुपा रूप है। वह जानती है कि समाज उसे अवला समझ कर उसका साथ देगा! कानून उनके आंँसुओ को ही सबूत मान लेगा! बस फिर क्या है जब इतने हथियार मौजूद है तो पतिदेव कैसे नहीं पिघलेंगे? जब एक स्टेज पर आकर पति भी थोड़ा कठोर रुख अपना लेता है तो महिलायें भी कानून से प्राप्त इन अधिकारों का दुरुपयोग कर अपनी सफलता का रास्ता तलाशने लगती है। कानून के अंतर्गत कई धाराएं लागू की गई जिसमें स्त्रियों के लिए अनेक अधिकार की लिस्ट तैयार की गई यह सारे प्रावधान इसलिए रखे गए थे कि महिलाओं का शोषण ना हो सके! पर अफसोस कि अब महिलायें ही इसका दुरुपयोग करने लगी है और इनकी आड़ में छोटी-छोटी बातों के कारण अक्सर पति पर गंभीर आरोप लगाकर उन्हें फँसा देती है और कानून का सहारा लेकर ऐसा कदम उठा लेती है जहांँ पर कानून भी उसे सच मान लेता है जिसमें निर्दोष व्यक्ति का फंँस जाना जायज है। कभी-कभी ऐसा होता है कि पत्नी भी व्यक्तिगत समस्या या असाध्य बीमारी से परेशान होकर या मानसिक बीमारी के कारण आत्महत्या कर लेती है तब भी यही माना जाता है कि आत्महत्या के लिए पत्नी को पति ने उकसाया होगा और पति को आरोपी समझ लिया जाता है। आज के वर्तमान युग में कानून बदलने चाहिए क्योंकि वह सौ वर्ष पहले बनाए गए कानून थे तब और आज की परिस्थितियों में काफी अंतर है स्त्री की शिक्षा का विकास तो हो चुका है और आज वह पहले की अपेक्षा आत्मनिर्भर भी हो रही है। जब भी पुलिस स्टेशन में किसी प्रकार की कोई शिकायत आती है तो पुलिस को निष्पक्ष जांच करनी चाहिए कि दोषी कौन है?जिस तरह प्रत्येक पुलिस स्टेशन में स्त्री संगठन की एक महिला सदस्य होती है उसी तरह पुरुष संगठन का भी एक सदस्य हो। जब पति के खिलाफ शिकायत दर्ज हो दोनों अपने ढंग से निष्पक्ष जांच करें। पहले दोनों संगठन समझाने की कोशिश करें दोनों के चाल चलन का पता लगाएं शादी से पहले मैरिज काउंसलिंग होनी चाहिए पति पत्नी दोनों को समान अधिकार होने चाहिए किसी एक को विशेषाधिकार नहीं होना चाहिए। स्त्री पुरुष दोनों कानून के सम्मुख बराबर है जो कानून का उल्लंघन करते हैं उसे रोकना चाहिए वरना भविष्य में कई सामाजिक व पारिवारिक समस्याएं खड़ी हो जाएंगी। असुरक्षित बच्चे, असुरक्षित जिंदगियां एक भयंकर रूप लेकर खड़ी हो जाएंगी। मनोरोगियों की संख्या बढ़ने लगेगी यदि पत्नी झूठ बोलती है तो उस पर कोई कानूनी कार्यवाही नहीं होती है इसलिए यह प्रावधान हो कि उसे भी सजा मिले जो आरोप सिद्ध होने पर पति को मिलती है ऐसा ना हो कि यह कानून अपना मूल उद्देश्य खो बैठे और जिनको वास्तव में इसकी आवश्यकता है वह वंचित रह जाए। अतः जरूरी है कि इस दिशा में उचित व्यावहारिक पहल हो। स्त्री ही नहीं पुरुष भी एक सुखमय पारिवारिक जीवन जीता है उसकी भी इच्छा होती है कि उसके पास पत्नी का प्रेम वा विश्वास हो बच्चों के चेहरे पर मुस्कान हो जीवन में सुख दुख बांटने वाला एक साथी हो।
लेखक पूजा गुप्ता
मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश)