किसानों का अहित न करने पाई नई व्यवस्था :प्रोफेसर सुधीर पंवार

by Umesh Paswan

चित्र प्रतीकात्मक

केंद्र सरकार ने कृषि उत्पादन एवं व्यापार में व्यापक परिवर्तन करने के लिए दो अध्यादेश जारी करने के साथ आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन किया है। सरकार का दावा है कि इन कदमों से खेती एवं कृषि व्यापार से सरकारी नियंत्रण समाप्त हो जाएगा, जिससे किसानों को फसल उत्पादन के लिए निजी निवेश एवं उन्नत तकनीकी उपलब्ध होगी। कृषि उत्पादों की बिक्री के लिए कृषि उत्पादन मंडी समिति की बाध्यता समाप्त होने से किसानों को एक देश-एक कृषि बाजार के साथ ही वैश्विक बाजार का लाभ भी मिलेगा।

विश्व व्यापार संगठन में शामिल होने तथा आर्थिक उदारीकरण के पश्चात विगत तीन दशकों में कांग्रेस एवं भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकारों ने राज्यों से कृषि एवं कृषि व्यापार कानूनों में संशोधन के लिए मॉडल कृषि उत्पाद मंडी अधिनियम-2003, कृषि भूमि पट्टा प्रारूप-2016 एवं अनुबंध खेती प्रारूप-2018 जारी किए थे, जिससे खेती एवं कृषि बाजार में राष्ट्रीय एकरूपता आए तथा निजी पूंजी निवेश के लिए वातावरण तैयार हो सके, लेकिन अलग-अलग कारणों से राज्य सरकारें संबंधित कानूनों में अपेक्षित संशोधन नहीं कर पाईं।

2016 में बरेली में एक जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा था कि उनका सपना है कि 2022 तक किसानों की आय दोगुनी हो जाए। इस सपने को वास्तविकता में बदलने के लिए अशोक दलवई की अध्यक्षता में गठित अंतर-मंत्रालयी समिति ने अनुबंध खेती, राष्ट्रीय बाजार, आवश्यक वस्तु अधिनियम में संशोधन सहित कई अन्य अनुशंसाएं की थीं। इन्हीं को आधार बनाते हुए मोदी सरकार राज्यों के संभावित विरोध को दरकिनार करते हुए आत्मनिर्भर भारत योजना के तहत समवर्ती सूची में सम्मिलित कृषि एवं कृषि उत्पाद बाजार पर राज्यों का नियंत्रण समाप्त कर राष्ट्रीय एकरूपता लाने के लिए ये अध्यादेश लाई है।

किसान (सशक्तीकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन एवं कृषि सेवा अध्यादेश अनुबंध खेती को स्वीकृति देता है। किसान एवं प्रायोजक/सेवा प्रदाताओं के बीच दो प्रकार के अनुबंध की व्यवस्था की गई है। पहली, व्यापार एवं वाणिज्य करार के तहत कृषि उत्पाद का स्वामित्व किसान के पास रहेगा। प्रायोजक किसान को पूर्व निर्धारित मूल्यों का भुगतान करेगा। दूसरी, उत्पादन करार के तहत फसल उत्पादन में निवेश प्रायोजक करेगा तथा जोखिम एवं स्वामित्व भी उसका ही होगा। वह किसान को उसकी सेवाओं के बदले में पूर्व निर्धारित भुगतान करेगा।

अध्यादेश में अनुबंध खेती के दो विवादित विषयों-उत्पाद की गुणवत्ता एवं मूल्यों के संबंध में भी कुछ व्यवस्थाएं की गई हैं। उपबंध-4 में प्रावधान है कि फसल तैयार होने एवं सुपुर्दगी के समय गुणवत्ता, ग्रेड एवं मानकों की निष्पक्ष जांच के लिए अर्हता प्राप्त परीक्षक नियुक्त होगा। इस व्यवस्था की सफलता संदिग्ध है, क्योंकि निष्पक्षता एवं अर्हता पर किसान एवं प्रायोजक के अलग मत होंगे। इस विवाद से बचने के लिए आवश्यक है कि प्रायोजक किसान से संपूर्ण उत्पाद खरीदे तथा अपने स्तर पर ग्रेडिंग करे। उपबंध-5 में व्यवस्था है कि किसान को उसकी फसल की कीमतों का एक भाग गारंटीड कीमत के रूप में मिलेगा तथा कुछ भाग एपीएमसी में मिलने वाली कीमतों के आधार पर होगा। इस प्रावधान के लागू होने में भी कुछ व्यावहारिक समस्याएं होंगी।

अनुभव के आधार पर कहा जा सकता है कि अनुबंध खेती में मजबूत आर्थिक स्थिति के कारण प्रायोजक समझौते की शर्तों का उल्लंघन कर सकता है। उत्तर प्रदेश में गन्ने की खेती अनुबंधित है। चीनी मिल एवं किसान के बीच में करार होता है कि किसान निर्धारित समय एवं मूल्य पर गन्ने की आपूर्ति करेगा और चीनी मिल उसे 14 दिनों में भुगतान करेगी।

भुगतान न करने पर 15 प्रतिशत ब्याज देगी। इस करार में सरकार के पक्षकार होने के बाद भी चीनी मिलें करार की शर्तों का पालन नहीं करतीं। पिछले कई वर्षों से किसानों का चीनी मिलों पर हजारों करोड़ रुपये का भुगतान बकाया रहता है और उस पर ब्याज भी नहीं मिलता।

कृषि उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सहायता) अध्यादेश मंडी एवं व्यापार से संबंधित है। इसमें व्यवस्था है कि कोई भी पैन कार्ड धारक किसानों से उसकी उपज खरीद सकता है और देश में कहीं भी उसका भंडारण एवं विक्रय कर सकता है। इसके लिए उसे किसी टैक्स का भुगतान भी नहीं करना पडे़गा। आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधित) में कुछ परिस्थितियों को छोड़कर कृषि उत्पादों को स्टाक सीमा से मुक्त कर दिया गया है। इसका उद्देश्य कृषि निर्यातकों एवं बाजार को स्थायित्व देना है।

यह एक तथ्य है कि रिकॉर्ड उत्पादन और सरकार के तमाम प्रयासों के बाद भी किसानों की आमदनी नहीं बढ़ी है। इसी कारण केंद्र को पीएम किसान सम्मान निधि योजना शुरू करनी पड़ी। स्पष्ट है कि 86.2 प्रतिशत लघु एवं सीमांत किसान कमजोर आर्थिक स्थिति के कारण बाजार में सौदेबाजी करने की स्थिति में नहीं होंगे। उन्हेंं उनकी सीमित उपज की बिक्री एवं उचित लाभ के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य एवं भावांतर जैसी योजनाओं की आवश्यकता रहेगी।

ऐसे में यह आवश्यक है कि कुछ समय के लिए कृषि बाजार की नई एवं पुरानी व्यवस्था साथ-साथ चले। भारत की जनसंख्या के 61.5 प्रतिशत किसानों एवं लगभग 26 लाख करोड़ रुपये के वार्षिक कृषि व्यापार में लगे लाखों व्यापारियों को प्रभावित करने वाले इन अध्यादेशों पर सार्वजनिक चर्चा नहीं हो पाई है। कई क्षेत्रीय दल इन अध्यादेशों के प्रावधानों का विरोध करते रहे हैं। आशा है कि विस्तृत प्रावधान बनाते समय सरकार किसानों और इन दलों से चर्चा करेगी जिससे किसानों के हितों से समझौता न हो।किसानों का अहित न करने पाई नई व्यवस्था
सुधीर पंवार, (लेखक प्रोफेसर एवं उप्र योजना आयोग के पूर्व सदस्य हैं)

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