
आदरणीय प्रधानमंत्री जी ने देश के विख्यात 46 अर्थशास्त्रियों से – बेरोज़गारी – डूबती कृषि – बदहाली – जनता को ग़रीबी से निकालने – के विषय पर चर्चा करी….
इन भारी-भरकम…सारे…उम्रदराज़ / अनुभवी…गम्भीर अर्थशास्त्रियों… से यह तो पूछा ही जाना चाहिए-देश तो 70 वर्षों से आपकी सलाह पर ही चल रहा है…
चाहे सलाह ….इन्होंने ली…या….उन्होंने…
तो इस स्थिति में देश पहुँचा कैसे…?
45 वर्षों में सबसे अधिक बेरोज़गारी बढ़ कैसे गई….?….भुखमरी में 119 में से 103 वाँ स्थान पहुँच कैसे गया….?…किसान क़र्ज़े में क्यूँ डूब गया…?…छोटी फ़ैक्टरी बंद क्यूँ हो रही हैं….?….छोटा दुकानदार परेशान क्यूँ है….?….व्यापार घाटा…200 अरब डॉलर (14 लाख करोड़ ₹) कैसे हो गया…?….
सीएजी ने पाया कि कई खर्च (ग्रामीण विकास, बुनियादी ढांचा, खाद्य सब्सिडी) ….बजट घाटे……में शामिल ही नहीं किए गए….पेट्रोलियम, सड़क, रेलवे, बिजली, खाद्य निगम के कर्ज भी आंकड़ों में सम्मिलित नहीं किए गए…
फिर भी….बजट घाटा….तय सीमा से ज़्यादा साढ़े सात लाख करोड़ ₹ क्यूँ हो गया….?….
शिक्षा-चिकित्सा बेतहाशा महँगी क्यूँ हो गई….?
आख़िर कोई ज़िम्मेवारी भी तो होनी चाहिए…
डॉक्टर से एक मरीज़ पर…ग़लती हो जाए तो FIR होती है….अध्यापक की कक्षा का रिज़ल्ट ख़राब आए तो कार्यवाही होती है…..
130 करोड़ जनता के प्रति ग़लती करने पर…इनका कुछ नहीं बिगड़ता….
आगे समाज – पीछे सरकार…
तभी होगा विकास…