छग सरकार ने कामधेनु विश्वविद्यालय अंजोरा का नाम बदलकर वासुदेव चंद्राकर के नाम पर करने का प्रस्ताव राज्यपाल को भेजा।जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।इसी सरकार ने इसी राज्यपाल को कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय का नाम बदलकर चंदूलाल चंद्राकर के नाम पर करने का प्रस्ताव दिया था, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया था।स्वीकार,अस्वीकार के पीछे कोई औचित्य, कोई तर्क है?पिछली भाजपा सरकार ने पत्रकारिता विवि का नाम ठाकरे जी के नाम पर रखा था।ठाकरे जी का संबंध क्या था पत्रकारिता से?उतना ही जितना एक राजनेता का होता है।इससे भी अजब नामकरण हेमचंद यादव विवि दुर्ग का है।इसे श्रद्धांजलि विवि कहना उचित होगा।क्योंकि यह नामकरण श्मसान में हेमचंद यादव के दाह संस्कार के समय किया गया था।तात्कालिक भावुकता में।यादव की विशेषता यह थी कि वे भाजपा के नेता थे।तत्कालीन मुख्यमंत्री, मंत्रियों के साथी और मित्र थे।ज्ञान परंपरा से उनका दूर दूर का नाता नहीं था।राज्यपाल ने नाम बदलने से इसीलिए इंकार किया कि वे भी भाजपा से संबंधित हैं,जिसने उन्हें राज्यपाल बनाया ।वैसा ही मामला वासुदेवजी का है।वे आजीवन दुर्ग ज़िला कांग्रेस के अध्यक्ष रहे।वे मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के राजनैतिक गुरू थे।कुल मिलाकर सारा मामला निजी संबंध निभाने का,आभार व्यक्त करने का या गुरु दक्षिणा देने का है।यह सब निजी बातें हैं।यदि आपको किसी आत्मीय, दल के नेता का आभार प्रकट करना है याद को जिंदा रखना है तो पार्टी कार्यालय या अपने मकान का नाम या अपने बच्चों का नाम उनके नाम पर रख लो।प्रदेश की जनता पर यह न थोपें।नाम बदलने की परिपाटी भी न डालें,कल दूसरा पद पर बैठेगा तो आपके रखे नाम को बदल देगा।अंतहीन सिलसिला चल पड़ेगा।अतः नामकरण में सावधानी बरतनी चाहिए और जनता की राय को भी शामिल करना चाहिए।राज्य सरकार द्वारा सुझाए गए नामों को देखिए।कुछ खास दिखता है।क्या मुख्यमंत्री अपनी जाति को प्रतिष्ठित करना चाहते हैं?इस पर कहने के लिए और भी है, फिर बाद में ।