आन लाइन आयोजन मे संयोजक जी. एच सागर ने उपस्थित अभियंता बंधुुओं का स्वागत करते हुए कहा कि परिषद् के मूल उद्देश्यो मे एक अभियता वर्ग को अपने अभियान्त्रिकी कौशल के इतर समाज व राष्ट्र सेवा हेतु प्रेरित करना तथा अवसर प्रदान करना भी है उसी तारतम्य मे राष्ट्र की सेवा मे अग्रणी रहे लोकमान्य तिलक जिनकी आज 100वी पुण्य तिथी है स्मरण कर रहे है ‘
श्री नागेंद्र जी ने अपने उद्बोधन में बताया कि जैसे-जैसे श्रेष्ठ जन आचरण करते हैं वैसे वैसे उनको प्रमाण मानकर सामान्य जन भी आचरण करते हैं। आज हम लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का स्मरण कर रहे हैं। 100 वर्ष पूर्व आज ही के दिन अर्थात 1अगस्त को वर्ष 1920 में वे परमधाम सिधार गये थे। जैसे हम गांधी जी को महात्मा, सुभाष चंद्र बोस को नेताजी और सावरकर जी को स्वातंत्र्यवीर कहते हैं, वैसे ही तिलक जी को लोकमान्य कहा जाता है ।यह उन्हें स्वयं जनता द्वारा दी गई उपाधि है क्योंकि वह जनता के दिल में सर्वमान्य बन गए थे । उन्होंने जनता को मंत्र दिया था कि स्वराज्य मेरा जन्म सिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर ही रहूंगा ।
उनका जन्म 23 जुलाई 1856 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले में चितपावन ब्राह्मण परिवार में हुआ था । पुणे मे उन्होंने बी ए तथा एलएलबी की उपाधि प्राप्त की।
वे अत्यंत स्वाभिमानी थे छात्रों में राष्ट्रभक्ति का भाव भरने के लिए उन्होंने अपने सहयोगियों 1890 में डेक्कन एजुकेशन सोसाइटी बनाई । समाज जागरण हेतु 1881 में केसरी नामक मराठी समाचार पत्र तथा अंग्रेजी में मराठा नामक साप्ताहिक की शुरुआत की । जनता से सीधे सरोकार हो इसलिए उन्होंने सन् 1893 में 10 दिनी सार्वजनिक गणेश उत्सव की शुरुआत की जो उस समय एक साथ 72 नगरों में मनाया गया जो आज भी पुरे देश मे अनवरत जारी है। सन 1895 में उन्होंने शिवाजी महोत्सव की नींव रखी ।
वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के गरम दल का प्रतिनिधित्व करते थे उनके साथ विपिन चन्द्र पाल एव लाला लाजपत राय तीनों को लाल पाल बाल के नाम से जाने जाते थे ।उन्हें कई बार अलग-अलग आरोपों में जेल की सजा सुनाई गई ।अपने साप्ताहिक पत्र ‘केसरी’ में “देश का दुर्भाग्य” शीर्षक से लेख लिखा था जिसमें ब्रिटिश सरकार की नीतियों की कड़ी आलोचना की गयी थी । उनको भारतीय दंड संहिता की धारा 124-ए के अन्तर्गत राजद्रोह के अभियोग में गिरफ्तार कर 6वर्ष के कठोर कारावास के अंतर्गत माण्डले (बर्मा वर्तमान मे माम्यार) जेल में भेज दिया गया।यह था 27 जुलाई 1897 का दिन । कारावास के दौरान लोकमान्य तिलक ने पढ़ने के लिए कुछ किताबों की मांग की लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उन्हे ऐसा कुछ पढ़ने और लिखने पर रोक लगा रखी थी जिसमे कोई राजनैतिक तथ्य हो। तब उन्होने इसी जेल में रहते हुए 500 से अधिक आध्यात्मिक ग्रंथो का अध्ययन किया तथा गीता की व्याख्या पर आधारित पुस्तक गीता रहस्य लिखी जिसका हिंदी सहित अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ । सज़ा पूरी होने से कुछ पहले ही बाल गंगाधर तिलक की पत्नी का देहांत हो गया। इस दुःखद खबर की जानकारी होने पर लोकमान्य तिलक ने शांत स्वर में सिर्फ़ इतना ही कहा कि यही ईश्वर की इच्छा थी , हमें तो उन्ही की इच्छा से परिचालित होना है ।

लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक एक शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और भारतीय राष्ट्रीय कोंग्रेस के गरम दल के कर्मठ नेता थे। उनके उग्रवादी विचारों के कारण ब्रिटिश शासन के अधिकारी उन्हें “भारतीय अशान्ति के जनक ” कहते थे। तिलक ने अपने त्याग , सेवा और निष्ठा के माध्यम से देशवासिओं का हृदय जीता था ।बम्बई में प्लेग की महामारी के समय जो उन्होंने सेवा धर्म निभाया उसे नही भुलाया जा सकता । उनकी कर्मठता , स्वतंत्रता संग्राम में सक्रियता और सेवाभाव के कारण वह भारतीय जनमानस में इतने समादृत और स्वीकृत हुए कि उन्हें देश ने ‘ लोकमान्य’ की उपाधि प्रदान की।
भारतीय शिक्षा तथा विकेंद्रित अर्थनीति पर उनका जोर था। उनका मत था कि स्वराज्य यानी सिर्फ अपनी सरकार नहीं बल्कि वेद, उपनिषद,रामायण,भगवत गीता आदि में बताए गए राज धर्म के आधार पर ही यह देश खड़ा हो सकता है। 1 अगस्त 1920 को उनका देहावसान हुआ।
इस अवसर पर सर्व अभियंताओ के साथ केन्द्रीय जल आयोग रायपुर के निदेशक श्री मनोज तिवारी एव जल मौसम विज्ञान रायपुर के उपसंचालक श्री अखिलेश वर्मा की उपस्थिति उल्लेखनीय रही ।
समापन मंत्र के साथ व्याख्यान का समापन हुआ