चोलामंडलम एवं प्राइवेट फाइनेंस कंपनियों के धोखाधड़ी के शिकार वाहन मालिक लामबंद होना शुरू।
छत्तीसगढ़ में न्याय दिलाने में सरकार पीछे नहीं रहती है जिसमें मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने चिटफंड कंपनियों पर नकेल कस दी है लेकिन चोलामंडलम ऐसी इन्वेस्टमेंट कंपनी बन गई है जिसके खिलाफ छत्तीसगढ़ में अपराध दर्ज करना संभव ही नहीं है भले ही चोलामंडलम ने नियम कायदों को ताक में रखकर बड़ी-बड़ी गाड़ियों का फाइनेंस की जिसकी ढेरों शिकायतें करने के बाद भी पुलिस विभाग कार्रवाई नहीं करता आखिर ऐसा कौन सा चोला इस investment कंपनी ने उठाओढा है, जिसके कारण उस पर कोई भी पुलिस अफसर हाथ नहीं डालना चाहता बीते 20 सालों में वाहन फाइनेंस में लगे ज्यादातर फाइनेंस कंपनियों द्वारा गैरकानूनी तरीके से अपने कारोबार को संचालित कर रहे हैं इसके द्वारा गैरकानूनी करतूतों को ही कानूनी अधिकार बताकर पुलिस तक को गुमराह किया जा रहा है छत्तीसगढ़ आज तक के इन फाइनेंस कंपनियों की पोल खोली थी छत्तीसगढ़ आज तक पत्रिका इन मामलों को हमेशा उठाते आई है चाहे चिटफंड कंपनियों का मामला हो या फिर फाइनेंस कंपनियों का आज के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल पूर्व के कांग्रेसी अध्यक्ष रहते हुए इस मुद्दे को मुखर ढंग से उठाये थे मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्होंने चिटफंड कंपनियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जो भोले भाले अभिकर्ता इस संयंत्र का शिकार थे उन्हें कानूनी अपराध और कचरे से मुक्त कराया उसी तरह वाहन फाइनेंस के कारोबार में लगे निजी फाइनेंस कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई की उम्मीद तो की है।

दरअसल परिवहन विभाग के कार्यालय में फाइनेंस कंपनियों की अंदर तक दखल है, परिवहन विभाग की जानकारी में इन कंपनियों की काली करतूत है उन्हें मालूम है प्रदेश के अधिकांश बड़े शहरों में इन कंपनियों के अवैध यार्ड है जहां गैरकानूनी तरीके से जप्त वाहनों को रखा जाता है इन वाहनों को रखने की एवज में पीड़ितों से भारी भरकम किराया वसूल किया जाता है यह यार्ड पूरी तरह से अवैध है इसके लिए न तो नगर निगम ने किसी तरह की एनओसी ली जाती है और ना ही इसके लिए कोई पंजीयन कराया जाता है परिवहन विभाग के नियमों में इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं है परिवहन विभाग के अधिकारी इसे अवैध मानते लेकिन इसके बावजूद कोई कार्यवाही नहीं की जाती है।इससे एक तरफ शासन को करोड़ों रुपए के राजस्व का चूना लगाया जा रहा है वहीं आम उपभोक्ताओं को परेशान किया जा रहा है।
सरकार पर भारी पड़ रही है निजी फाइनेंस कंपनियां।
निजी फाइनेंस कंपनियों ने प्रदेश में हजारों वाहन खरीदने वालों को चूना लगाया है लेकिन इसकी शर्तों की जानकारी नहीं होने के कारण वाहन मालिक लंबी लड़ाई नहीं लड़ पाते इन कंपनियों में बाहुबलियों का दबदबा है ये कंपनियां अपने वसुली के लिए बाउंसर रखते हैं जो मारपीट करके वसूली करते हैं कई लोग अपनी पूंजी और संपत्ति होते जा रहे हैं जिसके कारण कई परिवार खुदकुशी तक करने पर मजबूर हो जाते हैं इन कंपनियों को भारतीय रिजर्व बैंक की गाइडलाइंस का पालन करना चाहिए लेकिन वे इससे बच निकल जाती है थानों में इनके खिलाफ की गई शिकायतों को निकलवा कर जांच कमेटी गठित की जानी चाहिए ताकि प्रदेश में कई सरकार बने बाकी नए शासन से उम्मीद बंधी है सरकार अधिकारियों को आदेश देकर इन मामलों की खुलवाया जाना चाहिए।
पुलिस के साथ नेटवर्क बनाकर करती है षड्यंत्र
ऐसा नहीं है कि यह कंपनियां मनमानी अकेले और बिना किसी की जानकारी में कर रही पुलिस के निचले से लेकर आला अधिकारी तक इस बात से ना केवल वाकिफ हैं बल्कि उनकी संलिप्तता का भी अंदेशा है थानों के अधिकारियों की इन फाइनेंस कंपनियों के साथ संलिप्तता जगजाहिर है इनके नेटवर्क से उपभोक्ताओं पीड़ित है छत्तीसगढ़ आज तक पत्रिका ने अपने पहले अंको मे इसका खुलासा किया था जिसे रायपुर के पुलिस अधीक्षक कार्यालय में पदस्थ तत्कालीन स्टेनो सुरेश क्षत्रिय रायपुर यार्ड संचालित करता था तथा सीजर को श्रय देक कर सिजिंग के काम में सहभागी था ताकि उनके यार्ड में ज्यादा से ज्यादा गाड़ियां भी हो और उन्हें खड़े करने के एवज में भारी-भरकम किराया उसे प्राप्त हो सके जब कोई वाहन मालिक किसी थाने में फाइनेंस कंपनी के सीजर के खिलाफ कोई शिकायत करता था तो पुलिस अधीक्षक कार्यालय से उन्हें बचाने की सिफारिश हो जाती थी पुलिस अधीक्षक कार्यालय में पदस्थ होने के कारण वे स्टेनो संबंधित थानों में एफ .आई. आर. करने से बचाव कर देता था।
इन यादों में खड़े होने वाले ज्यादातर वाहन गलत तरीके से रखे जाते हैं वाहनों का किसी प्रकार से न्यायालय आदेश इनके पास नहीं होता लेकिन वाहन जब्ती के दौरान ड्राइवरों को डरा धमका कर यार्ड मालिक द्वारा सरेडर लेटर में हस्ताक्षर करवा लिया जाता पुलिस कार्रवाई से बचने के लिए इसकी सूचना थाने में देकर रिसीव करा लिया जाता है ताकि जब न्यायालय मामला आए तो उन्हें गुमराह किया जा सके कि कंपनी ने नियमों का पालन किया हैं और जब वाहन मालिक लूट का शिकार होने के बाद चीज की जाती थी इसकी सूचना पुलिस को दे दी गई थी लूट का शिकार होने के बाद फाइनेंस कंपनियों के मैनेजर से मिलते हैं तो वाहन मालिकों को सारी बकाया किस्त एक साथ जमा करने के लिए मजबूर किया जाता फाइनेंस के वक्त परिवहन विभाग के कोरे दस्तावेजों में हस्ताक्षर होने के कारण वाहन मालिक बंध जाता है और ब्लैक चेक कंपनी के पास जमा होने के कारण वाहन मालिक फंस जाता है वह ना तो रकम जमा कर पता है और ना ही अपने वाहन को छुरा पता है इन वाहनों को बिना प्रक्रिया का पालन किए कंपनी बेच देती है और शेष राशि फिर और बकाया निकाल देते हैं जिससे वाहन मालिक दबाव में आ जाते हैं इन कारणों से फाइनेंस कंपनियां कानून के जानकार लोगों को वाहन फाइनेंस करने से बचते हैं यह कंपनियां इतनी शातिर होती है कि पत्रकार,वकील पुलिस को गाड़ियां फाइनेंस करने से बचती है विवाद होने पर मैनेजर द्वारा वाहन मालिकों को धमकी दी जाती है कि खरबो का फाइनेंस कंपनी है इनसे तुम नहीं लड़ सकते इसीलिए इस मामले में चुप बैठ जाओ इसी में भलाई है।
शिकायत के सुनवाई के लिए चेन्नई मुंबई का चक्कर
निजी वाहन फाइनेंस कंपनियां अपना न्यायिक क्षेत्र छत्तीसगढ़ को नहीं रखती है जिसके कारण कोई भी विवाद होने की दशा में उपभोक्ता को चेन्नई मुंबई के चक्कर काटने पड़ते हैं यह फाइनेंस कंपनियां अपने विवादों का निपटारा अपने मुख्यालय में कराने के लिए बात करती है छत्तीसगढ़ के आज आम उपभोक्ताओं के लिए वहां जाना तो दूर केस लगना असंभव हो जाता है जबकि इन प्रकरणों का निपटारा छत्तीसगढ़ के न्यायालय में होना चाहिए वाहन फाइनेंस कंपनियां चतुराई से अनुबंध में ऐसी शर्ते शामिल करा लेती है ताकि विवाद होने पर दूसरे प्रदेशों के न्यायालय में प्रकरण की सुनवाई न हो और वे समझौता कराने के लिए अनुकूल वातावरण बना सके पीड़ित को भी न्याय के लिए चक्कर काटने से बेहतर समझौता करना लगता है उसे न्यायालय से न्याय मिलने की उम्मीद नहीं रह जाती जबकि वैधानिक रूप से यह नियम है कि जिस जिले में लेनदेन हुआ है और विवाद हुआ है उसकी सुनवाई उसी जिले के न्यायालय में होनी चाहिए यह गोरखधंधा हेड ऑफिस प्रदेश से बाहर रखे जाने के कारण सफल हो जाता हैं भारतीय रिजर्व बैंक भी इन मामलों की शिकायतों पर आंखें मूंदे हुए हैं।सोरसेस छत्तीसगढ़ आजतक