आज संपूर्ण देश के मीडिया सुशांत रिया कि घटना दिखा रहे हैं आज से 61 साल पहले वही बम्बई कि घटना को याद दिलाते हैं जो मुंबई की घटना था उसमें भी थी एक लड़की और आज की घटना में भी है एक लड़की हैं।

by Umesh Paswan

उसी केस के बारे में बताते हैं।

क्‍या हुआ था उस समय
पारसी कमांडर कवास मानेकशॉ नानावटी इंग्लिश पत्‍नी सिल्विया और बच्‍चों के साथ मुंबई में रहते थे।
नानावटी घर से दूर रहते थे औरपत्‍नी सिल्विया का अफेयर पति के दोस्‍त प्रेम आहूजा के साथ शुरू हो गया।
21 अप्रैल 1959 को सिल्विया ने नानावटी को सब कुछ बताया और कहा कि प्रेम उनसे शादी नहीं करना चाहते हैं।


नानावटी ने अपने परिवार मेट्रो सिनेमा पर ड्रॉप किया और खुद नेवल बेस पहुंच गए।
यहां पर उन्‍होंने अपनी पिस्‍टल ली और बहाना बनाकर छह बुलेट्स लीं।
नानावटी आहूजा के घर और सिल्विया के साथ शादी से इंकार पर नानावटी ने तीन बार आहूजा पर फायर किया।
वेस्‍टर्न नेवल कमांड के मार्शल की सलाह पर नानावटी ने मुंबई के डिप्‍टी कमिश्‍नर के सामने सरेंडर कर दिया।
नानावटी को एक सच्‍चा देशभक्‍त माना जाता था और उनके इस गुनाह का कोई और गवाह नहीं था।
आहूजा की बहन मैमी नेइस बात को खारिज कर दिया कि गुस्‍से में उनके भाई की हत्‍या नहीं हुई थी।
बांबे हाईकोर्ट में उस समय आहूजा का केस मशहूर वकील राम जेठ‍मलानी लड़ रहे थे।
बांबे हाईकोर्ट ने नानावटी को दोषी पाया और उन्‍हें उम्रकैद की सजा सुनाई।
इसके बाद नानावटी ने सजा के खिलाफ वर्ष 1961 में सुप्रीम कोर्ट में अपील की।
सुप्रीम कोर्ट ने नवंबर 1961 पर हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा।
नानावटी पारसी थे तो आहूजा सिंधी और केस की वजह से दोनों समुदायों के बीच तनाव का माहौल था।
महाराष्‍ट्र की राज्‍यपाल विजय लक्ष्‍मी पंडित को एकसिंधी बिजनेसमैन भाई प्रताप की दया याचिका मिली थी।
भाई प्रताप को माफी देने की बात पर ब्‍यूरोक्रेट्स सहमत थे और फिर नानावटी को भी माफी देने की बात हुई।
विजय लक्ष्‍मी पंडित ने कहा कि भाई प्रताप को नानावटी को माफी मिलने के बाद माफी दी जाएगी।
उन्‍होंने यह फैसला दोनों समुदायों में शां‍ति और सौहार्द स्‍थापित हो सके इस वजह से दिया था।
मैमी आहूजा ने सरकार के अनुरोध को माना और नानावटी तीन वर्ष जेल में बिताने के बाद रिहा हो गए।

लंबा कद. ठुसा हुआ कसीला बदन. सफेद रंग की ड्रेस पहनता और खामोश आंखें लिए निकलता, तो देखने वालों की जुबां बत्तीसी के अंदर पड़ी-पड़ी मुड़ने लगती. नेवी कमांडर कवस मानेकशॉ नानावटी. मुल्क की खातिर समंदर पर महीनों ड्यूटी पर तैनात रहता. वो साल 1959 था. कमांडर नानावटी बॉम्बे (मुंबई) में अपने घर लौटता है. तीन प्यारे बच्चों की खूबसूरत आंखों वाली मां और अपनी वाइफ सेल्विया से मिलता है.
मुलाकात का मिजाज इश्क से कुछ महरूम रहता है. नानावटी को अखरता है. सेल्विया को प्यार हो गया था, मगर किसी और से. बॉम्बे के अय्याश बिजनेसमैन प्रेम आहूजा से. खामोश आंखों से नानावटी अपने घर से निकल जाता है. साथ में सेल्विया और बच्चों को ले जाकर सिनेमा हॉल छोड़ देता है. कहता- तुम लोग फिल्म देखो. मैं आता हूं.

नानावटी हॉल से सीधा जाता है नेवल हेडक्वार्टर. सर्विस रिवॉल्वर इश्यू करवाकर सीधा पहुंचता है बॉम्बे की मालाबार हिल्स के पास जीवन ज्योति बिल्डिंग. प्रेम आहूजा के अपार्टमेंट. नानावटी प्रेम आहूजा के बैडरूम में जाता है. कुछ देर बाद बाहर काम कर रहे नौकर कांच टूटने की आवाज के साथ तीन गोलियों की गूंज सुनकर अंदर दौड़ पड़ते हैं. टॉवल और खून से सना प्रेम आहूजा फर्श पर पड़ा हुआ था. प्रेम आहूजा की बहन मैमी नानावटी को चौंकी सवालिया आंखों से देखती है. नानावटी बिना जवाब दिए घर के सिक्योरिटी गार्ड से निकलते वक्त कहता, ‘मैं सरेंडर करने पुलिस के पास जा रहा हूं.’

किस्सा यहां से खत्म नहीं, शुरू होता है. इंडियन हिस्ट्री का सबसे यादगार दिलचस्प केस. कमांडर नानावटी केस, जिस में उस वक्त के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू को भी दिलचस्पी रही. ये केस ज्यूरी ट्रायल, बॉम्बे सेशन कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ा गया. कोर्ट समेत सब ने माना कि नानावटी ने आहूजा को मारा. खुद नानावटी ने भी. लेकिन उतने ही लोगों ने कहा- वो दोषी नहीं है. लेकिन सबने चाहा कि उसे रिहा किया जाए. नेहरू की बहन और तत्कालीन बॉम्बे गर्वनर विजय लक्ष्मी पंडित से लेकर बाद में खुद प्रेम आहूजा की बहन तक. कोर्ट के बाहर खड़ी सैकड़ों की भीड़ मर्डर के दोषी नानावटी की रिहाई की दुआ करते. नानावटी उस वक्त का हीरो बन चुका था.

नानावटी केस इतना दिलचस्प रहा कि कई फिल्में बनीं. किताबें लिखी गईं. 1963 में आई ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ और ‘अचानक’. सलमान रूश्दी जैसे बड़े राइटर्स ने ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रन’ में इस इंसीडेंट पर अपनी किताब में एक चैप्टर लिखा. अक्षय कुमार की फिल्म ‘रुस्तम’ भी पूरी तरह से नानावटी केस पर बेस्ड है. पर ये तो बात हुई नानावटी केस और उसके पब्लिक सपोर्ट की. हम आपको बताते हैं उस केस की पूरी डिटेल्स. क्यों और कैसे एक गुनहगार कमांडर के किए मर्डर को देशभक्ति से जोड़ा गया. और उसे बचाने के लिए ज्यादातर सब एक ही हमाम में नजर आए.

तारीख: 27 अप्रैल 1959, पुलिस स्टेशन, बॉम्बे
कमांडर नानावटी: मैंने एक आदमी को गोली मारी.
इंस्पेक्टर लोबो: वो मर चुका है. मुझे अभी गामदेवी पुलिस स्टेशन से ये मैसेज मिला. कमांडर नानावटी, क्या आप चाय पिएंगे?
कमांडर नानावटी: बस एक ग्लास पानी.

केएम नानावटी इंडियन नेवी में लेफ्टिनेंट कमांडर था. पारसी कम्युनिटी से बिलॉन्ग करता था. सेल्विया इंग्लैंड में पली बढ़ी खूबसूरत औरत. नानावटी से साल 1949 में इग्लैंड में मुलाकात हुई. शादी हुई. दोनों के तीन बच्चे हुए. दो बेटे एक बिटिया.

कब शुरू हुआ ट्रायल?
23 सितंबर 1959. खचाखच भरे डिस्ट्रिक और सेशन कोर्ट में केस की सुनवाई शुरू हुई. जज थे आरबी मेहता. ये केस सबसे पहले ज्यूरी में चला. ज्यूरी में कुल 9 मेंबर थे. दो पारसी, एक एंग्लो इंडियन, एक क्रिश्चियन और पांच हिंदू. सरकार की तरफ से चीफ पब्लिक प्रोसिक्यूटर सी. एम त्रिवेदी ने नानावटी पर प्रेम आहूजा की इरादतन हत्या का चार्ज लगाया. डिफेंस की तरफ से फेमस क्रिमिनल लॉयर कार्ल जे खंडालावाला केस लड़ रहे थे. ये पूरा ट्रायल एक महीने चला. ज्यूरी मेंबर्स क्राइम सीन वाली जगह तक गए.

ज्यूरी यानी कोर्ट की ओर से किसी केस की सुनवाई के लिए चुने गए लोग. ये सोसाइटी के जानेमाने लोग होते थे, जिनके सामने किसी केस की सारी दलीलें रखी जाती. इसके बाद ज्यूरी उस केस का फैसला सुनाती. नानावटी केस के बाद किसी भी केस में ज्यूरी ने कभी कोई सुनवाई नहीं की.
आहूजा के वकीलों ने कहा, नानावटी ने प्लान कर मर्डर किया था. सबूत पेश किए गए. 24 गवाहों की गवाही हुई. जिन इंस्पेक्टर लोबो के सामने नानावटी ने सरेंडर किया था, उनकी गवाही भी हुई. लेकिन लोबो के सामने नानावटी के कबूलनामे को ज्यूरी के सामने इसलिए भी नहीं माना गया, क्योंकि गवाही मैजेस्ट्रियल सुपरविजन में नहीं हुई थी. लोबो ने कोर्ट में लिखकर कहा:

‘नानावटी ने जब सरेंडर किया, तब उन्होंने अपनी ऑफिस ड्रेस पहने हुई थी. सफेद ड्रेस. इस ड्रेस में खून का एक भी धब्बा नहीं था.’
लोबो के इस बयान के बारे में आहूजा का केस लड़ रहे वकीलों ने कहा, ‘ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि नानावटी ने आहूजा को जानबूझकर दूर से मारा, ताकि कोई सबूत न रह जाए.’ डिफेंस के वकीलों ने कोर्ट में तमाम सबूत पेश किए, कि प्रेम आहूजा की मौत महज एक हादसा थी. नानावटी की तरफ से सेल्विया ने भी कोर्ट में गवाही दी. मंजर कोर्ट का कुछ यूं था कि दो दिन नानावटी विटनेस बॉक्स में खड़ा रहा.

सेल्विया और नानावटी ने कोर्ट में कहा:

मर्डर का लव ट्रॉयंगल

‘मैंने प्रेम आहूजा को इरादतन नहीं मारा. हां मैं प्रेम आहूजा के पास गया था. ताकि उससे पूछ सकूं कि क्या वो मेरी पत्नी सेल्विया से शादी करेगा. और मेरे बच्चों का ख्याल रखेगा. क्योंकि मेरी वाइफ सेल्विया को उससे प्यार हो गया था. लेकिन प्रेम आहूजा ने बात करने की बजाय झगड़ना शुरू कर दिया. प्रेम आहूजा ने मेरे सवालों के जवाब में कहा, ‘क्या मैं हर उस औरत से शादी कर लूं, जिनके साथ मैं बिस्तर पर सोया हूं. गेट आउट फ्रॉम हेयर.’ इसके बाद हम दोनों में झड़प हो गई. दोनों की झड़प में रिवॉल्वर लिफाफे समेत नीचे गिर गई. मैंने जल्दी से रिवॉल्वर उठा ली. प्रेम मुझसे रिवॉल्वर छीनने लगा, इसी झड़प के दौरान दो गोलियां चली. अगर मैं सच में प्रेम आहूजा को मारना चाहता तो मैं उसे तब ही गोलियों से छलनी कर देता, जब वो ड्रेसिंग टेबल के सामने खड़ा था.’ – नानावटी, विटनेस बॉक्स में

आहूजा के साथ जब तक मैं फिजिकल नहीं हुई थी, तब तक वो हमेशा वादे करता था कि वो मुझसे शादी करेगा. लेकिन जब हम दोनों ने सेक्स कर लिया. उसके बाद वो अपनी बात से पलट गया. प्रेम आहूजा से मेरे रिलेशन के बारे में जब मैंने नानावटी को बताया तो उसने मुझसे पूछा कि क्या वो शादी करेगा. मेरे पास इस बात का जवाब नहीं था. मैं चुप थी. नानावटी ने मुझसे कहा कि वो आहूजा से मेरे बारे में बात करने जा रहा है कि क्या वो तुम्हें अपनाएगा. मैंने नानावटी से बहुत कहा कि वो ऐसा न करे, आहूजा तुम्हें गोली मार देगा. लेकिन वो नहीं माना. और कहा- तुम मेरी फिक्र मत करो. ये अब मायने नहीं रखता. वैसे भी मैं खुद को मार दूंगा. जब मेरे पति नानावटी ने ऐसा कहा तो मैंने उसकी बांहें पकड़कर उसे रोकने की कोशिश करते हुए कहा- तुम्हारी कोई गलती नहीं है, तुम खुद को क्यों मारोगे.- सेल्विया

नानावटी केस इतना दिलचस्प रहा कि कई फिल्में बनीं. किताबें लिखी गईं. 1963 में आई ‘ये रास्ते हैं प्यार के’ और ‘अचानक’. सलमान रूश्दी जैसे बड़े राइटर्स ने ‘मिडनाइट्स चिल्ड्रन’ में इस इंसीडेंट पर अपनी किताब में एक चैप्टर लिखा. अक्षय कुमार की फिल्म ‘रुस्तम’ भी पूरी तरह से नानावटी केस पर बेस्ड है. पर ये तो बात हुई नानावटी केस और उसके पब्लिक सपोर्ट की. हम आपको बताते हैं उस केस की पूरी डिटेल्स. क्यों और कैसे एक गुनहगार कमांडर के किए मर्डर को देशभक्ति से जोड़ा गया. और उसे बचाने के लिए ज्यादातर सब एक ही हमाम में नजर आए.

तारीख: 27 अप्रैल 1959, पुलिस स्टेशन, बॉम्बे
कमांडर नानावटी: मैंने एक आदमी को गोली मारी.
इंस्पेक्टर लोबो: वो मर चुका है. मुझे अभी गामदेवी पुलिस स्टेशन से ये मैसेज मिला. कमांडर नानावटी, क्या आप चाय पिएंगे?
कमांडर नानावटी: बस एक ग्लास पानी.

केएम नानावटी इंडियन नेवी में लेफ्टिनेंट कमांडर था. पारसी कम्युनिटी से बिलॉन्ग करता था. सेल्विया इंग्लैंड में पली बढ़ी खूबसूरत औरत. नानावटी से साल 1949 में इग्लैंड में मुलाकात हुई. शादी हुई. दोनों के तीन बच्चे हुए. दो बेटे एक बिटिया.

कब शुरू हुआ ट्रायल?
23 सितंबर 1959. खचाखच भरे डिस्ट्रिक और सेशन कोर्ट में केस की सुनवाई शुरू हुई. जज थे आरबी मेहता. ये केस सबसे पहले ज्यूरी में चला. ज्यूरी में कुल 9 मेंबर थे. दो पारसी, एक एंग्लो इंडियन, एक क्रिश्चियन और पांच हिंदू. सरकार की तरफ से चीफ पब्लिक प्रोसिक्यूटर सी. एम त्रिवेदी ने नानावटी पर प्रेम आहूजा की इरादतन हत्या का चार्ज लगाया. डिफेंस की तरफ से फेमस क्रिमिनल लॉयर कार्ल जे खंडालावाला केस लड़ रहे थे. ये पूरा ट्रायल एक महीने चला. ज्यूरी मेंबर्स क्राइम सीन वाली जगह तक गए.

ज्यूरी यानी कोर्ट की ओर से किसी केस की सुनवाई के लिए चुने गए लोग. ये सोसाइटी के जानेमाने लोग होते थे, जिनके सामने किसी केस की सारी दलीलें रखी जाती. इसके बाद ज्यूरी उस केस का फैसला सुनाती. नानावटी केस के बाद किसी भी केस में ज्यूरी ने कभी कोई सुनवाई नहीं की.
आहूजा के वकीलों ने कहा, नानावटी ने प्लान कर मर्डर किया था. सबूत पेश किए गए. 24 गवाहों की गवाही हुई. जिन इंस्पेक्टर लोबो के सामने नानावटी ने सरेंडर किया था, उनकी गवाही भी हुई. लेकिन लोबो के सामने नानावटी के कबूलनामे को ज्यूरी के सामने इसलिए भी नहीं माना गया, क्योंकि गवाही मैजेस्ट्रियल सुपरविजन में नहीं हुई थी. लोबो ने कोर्ट में लिखकर कहा:

‘नानावटी ने जब सरेंडर किया, तब उन्होंने अपनी ऑफिस ड्रेस पहने हुई थी. सफेद ड्रेस. इस ड्रेस में खून का एक भी धब्बा नहीं था.’
लोबो के इस बयान के बारे में आहूजा का केस लड़ रहे वकीलों ने कहा, ‘ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि नानावटी ने आहूजा को जानबूझकर दूर से मारा, ताकि कोई सबूत न रह जाए.’ डिफेंस के वकीलों ने कोर्ट में तमाम सबूत पेश किए, कि प्रेम आहूजा की मौत महज एक हादसा थी. नानावटी की तरफ से सेल्विया ने भी कोर्ट में गवाही दी. मंजर कोर्ट का कुछ यूं था कि दो दिन नानावटी विटनेस बॉक्स में खड़ा रहा.

डिफेंस बनाम प्रोसिक्यूशन
नानावटी के वकील कार्ल खंडालावाला ने ज्यूरी के सामने कहा, ‘प्रेम आहूजा की मौत बस एक हादसा है. नानावटी के खिलाफ एक भी पुख्ता सबूत नहीं है. कमांडर नानावटी ने इस देश के कानून, भगवान की नजर में कोई अपराध नहीं किया है. मैं किसी दया या सिम्पेथी की उम्मीद नहीं करता हूं. मैं बस चाहता हूं कि फैक्टस के आधार पर फैसला हो.’

प्रेम आहूजा और सरकार की तरफ से केस लड़ रहे वकील त्रिवेदी ने कहा, सबूत ये साफ कह रहे हैं कि नानावटी ने जानबूझकर प्रेम आहूजा का मर्डर किया. सारे सबूत नानावटी के खिलाफ हैं. लेकिन इस केस की एक्सपशनल सर्कमस्टेंशस को देखते हुए ज्यूरी नानावटी को गिल्टी करार देने का फैसला वापस ले सकती है.

तारीख 21 अक्टूबर 1959. जज ने ज्यूरी से फैसला सुनाने के लिए कहा. शाम के साढ़े चार बज रहे थे. ज्यूरी ने कुछ वक्त मांगा. घंटे बीते. लोगों की भीड़ बढ़ी. ज्यूरी शाम को साढ़े सात बजे लौटी और फैसला सुनाया:

‘कमांडर नानावटी मर्डर के दोषी नहीं हैं, नॉट गिल्टी.’
ज्यूरी ने प्रेम आहूजा की इरादतन हत्या करने के आरोप को भी खारिज किया. इस फैसले के पक्ष में ज्यूरी के 9 में से 8 मेंबर रहे. कोर्टरूम में तालियां बजने लगी. सब चहकने लगे. लेकिन कुछ देर बाद ही सेशन कोर्ट जज मेहता ने एक बात कही, जिससे मंजर में खामोशी छा गई. जज मेहता ने ज्यूरी के फैसले के बावजूद केस को बॉम्बे हाईकोर्ट में रेफर कर दिया. कहा- इंसाफ के लिए ये जरूरी है.

हाईकोर्ट में नानावटी केस
हाईकोर्ट में नानावटी केस में डिफेंस की सारी दलीलें काम नहीं आईं. हाईकोर्ट में कमांडर नानावटी घिरते नजर आए. हाईकोर्ट में नानावटी को दोषी माना गया. आगे केस सुप्रीम कोर्ट गया, वहां भी हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा गया. नानावटी को जेल भेज दिया गया.

मुंबई के गवर्नर ने इंडिया के संविधान का हवाला देते हुए कहा कि नानावटी केस की नेवल कस्टडी पेंडिंग है, सुप्रीम कोर्ट में इसको लेकर याचिका भी दायर की हुई. तब के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने नेवी चीफ की अपील और लॉ मिनिस्ट्री की क्लीयरेंस मिलने पर गर्वनर को नानावटी की सजा सस्पेंड करने और रिमांड नेवी को सौंपने की सलाह दी. Blitz ने नानावटी को माफी देने को लेकर फ्रंट पेज पर लगभग कैंपेन सा चला दिया. लोग नानावटी को माफ करने की अपील करने लगे.

बता दें नानावटी पारसी कम्युनिटी से था. और प्रेम आहूजा सिंधी. ऐसे में नानावटी को रिहा करने को लेकर एक पॉलिटिकल डर ये भी था कि कहीं सिंधी बुरा न मान जाएं. लेकिन तभी एक सिंधी ट्रेडर भाईप्रताप को फर्जी लाइसेंस मामले में जेल हो गई. भाईप्रताप को सिंधियों का सपोर्ट था. भाईप्रताप की रिहाई की मांग की जाने लगी. तर्क दो दिए गए. क्राइम छोटा है और दूजा फ्रीडम फाइटर बैकग्राउंड.

उधर, प्रेम आहूजा की बहन मैमी ने लिखित में नानावटी को माफ करने के लिए अपील की. मैमी ने कहा कि उसे नानावटी के रिहा होने से कोई दिक्कत नहीं है. दोनों पार्टियों के बीच समझौते की बात की जाने लगी. तब काम आए वरिष्ठ वकील राम जेठमलानी. जेठमलानी ने दोनों ग्रुप्स के बीच समझौता कराया. तब मुंबई की गवर्नर थीं नेहरू की बहन विजयलक्ष्मी पंडित. गवर्नर विजयलक्ष्मी पंडित ने एक ही दिन नानावटी और भाईप्रताप को जेल से रिहा कर दिया. तारीख थी 17 मार्च 1964. तीन साल से कम वक्त जेल में रहने के बाद नानावटी जेल से रिहा हो चुका था.

कुछ वक्त मुंबई में रहने के बाद नानावटी फैमिली के साथ कनाडा शिफ्ट हो गए. और फिर कभी नहीं लौटे. साल 2003 में कमांडर नानावटी की मौत हो गई

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9 comments

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