नगर पालिक निगम के पूर्व नेताप्रतिपक्ष संजय जे.दानी ने भिलाई नगर निगम द्वारा 1248 रिक्त भूखंडों में से 803 भूखंड जिसमें आवासीय योजना के 500 भूखंड जिसका कुल छेत्र 60,400 वर्गमीटर है, व्यवसायिक योजना में 302 भूखंड जिसका कुल छेत्र 14,164 वर्गमीटर है,आवास सह व्यावसायिक योजना में 90 मीटर का एक मात्र भूखंड जो भिलाई इस्पात संयंत्र,उद्योग विभाग व जामुल छेत्र में है,उक्त भूखंडों की नीलामी/निविदा के प्रस्ताव पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुवे कहा कि निगम आयुक्त एवं प्रशासन पहले इस बात को सार्वजनिक करे कि भिलाई नगर निगम की वास्तविक आय क्या है और निगम के आय के स्रोत कौन कौन से है,क्या निगम निजी संस्थाओं से संपत्ति कर की जो वसूली की जा रही है, वे संस्थायें ठीक से काम नही कर रही है या भिलाई नगर निगम की प्रशासनिक व्यवस्था चरमरा गयी है जबकि भिलाई इस्पात संयंत्र प्रबंधन से लगभग 10 करोड़ रु.आय के रूप में निगम को देता है,केन्द्र परिवर्तित व राज्य परिवर्तित योजनाओं के अतिरिक्त सांसद निधि व विधयाक निधि से भी निगम में विकास कार्य कराये जाते है इसके अलावा केन्द्र सरकार प्रत्येक राज्यों को वित्त आयोग के माध्यम से विकास कार्यों हेतु करोड़ो रूपये की राशि का आबंटन करता है और भी श्रोत है जिससे निगम को आय होती है,पूर्व नेताप्रतिपक्ष ने निगम महापौर एवं महापौर परिषद के सदस्यों से जानना चाहा कि ऐसी क्या आवश्यकता या आपदा आ गई कि निगम को अपनी 1248 रिक्त भूखंडों में से 803 भूखंडों को बेचने हेतु शासन ने स्वीकृति दी।पूर्व नेताप्रतिपक्ष ने कहा कि वर्ष 2000 में जब पहली बार भिलाई में निगम अस्तित्व में आया तबसे आज वर्तमान तक जितने भी तत्कालीन आयुक्त निगम में पदस्थ हुवे उन्होंने कभी भी निगम की आर्थिक स्थिति के चलते इस प्रकार का प्रस्ताव महापौर परिषद के माध्यम से नही लाया,जबकि नगर पालिक निगम अधिनियम एवं नियम 1956 में इस बात का स्पष्ट तौर से उल्लेख है कि कोई भी ऐसा कार्य जो नीतिगत व नीति विषयक है जिससे शहर प्रभावित होता है, चूंकि यह निगम की संपत्ति है तो उसके विषय मे निर्णय लेने का अधिकार आयुक्त व महापौर को नही वरन सदन पूर्ण बहुमत से अपना गुण दोषों के आधार पर पक्ष रखेगा,और उसे क्रियान्वित करने से पूर्व निगम की सामान्य सभा मे चर्चा परिचर्चा उपरांत लागू करना आवश्यक होता है,पूर्व नेताप्रतिपक्ष ने निगम आयुक्त से प्रश्न किया क्या आयुक्त ने इन भूखंडों की निविदा/नीलामी हेतु चुने हुवे जनप्रतिनिधियों से सहमति ली थी या राज्य शासन ने आयुक्त को व्यक्तिगत निर्णय लेने का अधिकार दे दिया है,पूर्वनेताप्रतिपक्ष ने निगम आयुक्त से कहा कि नैतिकता के नाते महापौर व आयुक्त को तत्कालीन विशेष छेत्र विकास प्राधिकरण के समय जितने भी योजनाओं के तहत चाहे वह शासन स्तर पर हो या (EOW) में जाँच के तहत लंबित है पहले उन भूखंडों का निराकरण करवाना चाहिये, जैसे 296 प्रकरण,शिवनाथ विस्तार योजना,मधु मेमोरियल,नेहरू नगर परिसर,प्रियदर्शनी परिसर पूर्व व पश्चिम,दक्षिण गंगोत्री व्यावसायिक योजना,जवाहर नगर,शिवजी नगर,अन्नपूर्णा मार्केट, कोसा नगर,मोतीलाल नेहरू नगर,राधिका नगर,मदर टेरेसा नगर आवासीय भूखंड,गुरु घाँसीदास नगर आवासीय योजना,बसंत विहार,पंडित दीनदयाल आवासीय योजना,कृष्णा नगर निगम छेत्रों के बहुत से आवासीय व व्यावसायिक भूखंड जिसके उपयोग का प्रयोजन परिवर्तित कर दिया गया हो,शारदापारा आवासीय योजना ऐसे बहुत से भूखंड शासन या अन्य संस्थाओं में कई वर्षों से जाँच स्तर पर है,जिसमे भिलाई की जनता की खून पसीने की कमाई लगी है जिसमे कोंग्रेस के ही एक बड़े नेता ने शिकायत दर्ज कर मामले को कई वर्षों से उलझा दिया है,अपने राजनैतिक प्रभाव से अपने व्यक्तिगत भूखंडों का निराकरण कर लिया मगर जहाँ योजनांतर्गत भूखंडों का आबंटन हुवा है वो आज भी जाँच के दायरे में है उन भूखंडों को निगम भवन अनुज्ञा भी जारी नही कर रहा है,निगम महापौर व आयुक्त इस जनहित से जुड़ी गंभीर समस्याओं का निराकरण पहले करे बाद में 1248 भूखंडों में से 803 भूखंड जिनको बेचने की स्वीकृति राज्य शासन ने दी है नीलामी/निविदा के माध्यम से उस पर अपना ध्यान बाद में केन्द्रित करे, पूर्व नेताप्रतिपक्ष ने निगम आयुक्त से यह भी जानना चाहा कि इन भूखंडों की निश्चित दरें क्या तय की है निगम ने,क्योंकि निगम छेत्र में अलग अलग स्थानों पर भूखंडों का दर एक जैसा नही है,क्या ये दरें कलेक्टर द्वारा निर्धारित दरों के अनुरूप होंगी,पूर्वनेताप्रतिपक्ष ने इस नीतिगत व नीति विषयक विषय पर निगम के चुने हुवे 70 जनप्रतिनिधियों (पार्षदों) की चुप्पी पर आश्चर्य व्यक्त करते हुवे कहा कि इतना बड़ा निर्णय निगम महापौर व आयुक्त द्वारा लिया जा रहा है उसमें निगम के सक्रिय व जागरूक पार्षदगणों ने चुप्पी क्यों साधी हुई है,चूंकि यह एक्ट का विषय है इन भूखंडों की नीलामी/निविदा से निश्चित रूप से शहर प्रभावित होगा,ये जनता द्वारा चुने हुवे जनप्रतिनिधियों के अधिकार भी है।पूर्वनेताप्रतिपक्ष ने कहा कि अगर आयुक्त ही नीतिगत व नीति विषयक निर्णय लेंगे तो निर्वाचित जनप्रतिनिधियों की भूमिका का कोई औचित्य नही रह जाता। निगम की अगर माली आर्थिक व्यवस्था चरमरा गयी है तो इसके लिये सिर्फ और सिर्फ महापौर व निगम आयुक्त जिम्मेदार है,निगम की आर्थिक स्थिति का हवाला देकर बड़ा खेल हो रहा है जिससे करोड़ो अरबों रूपये की आय राजस्व के रूप में आयेगी उसमें पारदर्शिता और आपसी लेनदेन की क्या स्थिति होगी यह भविष्य के गर्भ में है,लेकिन इतने बड़े नीतिगत विषय मे पार्षदों की क्या भूमिका होगी ये समझ से परे है?और यही उनके आने वाले भविष्य को तय करेगा।