सरकार ने (1) कृषक उत्पाद व्यापार एवं वाणिज्य विधेयक(2) किसान अनुबंध विधेयक और (3) आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक 2020 संसद में ध्वनिमत से पारित करवा लिया। इसके विरोध में एनडीए के सबसे पुराने सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने भी उसका साथ छोड़ दिया और उसके एकमात्र केंद्रीय मंत्री ने भी इस्तीफा दे दिया ।अब इस पर राष्ट्रपति महोदय ने भी अपने हस्ताक्षर कर दिए हैं। आइए इन तीनों विधेयकों पर विचार करते हैं। इनके सभी पहलुओं पर खुले मन से विचार करने की जरूरत है ।आखिर यह मामला देश के अन्नदाताओं से जुड़ा है। सबसे पहले सत्तापक्ष ने इसके जो फायदे बताए हैं उनकी बात करते हैं। पहला- किसान अपनी फसल को देशभर में बेचने के लिए स्वतंत्र होगा। किसान को उसके फसल की वाजिब कीमत मिलेगी, उसे एक बड़ा मार्केट मिलेगा और इसका उसे पूरा लाभ मिलेगा।
- इसमें कई अड़चनें हैं। इस व्यवस्था में सब कुछ ऑनलाइन होगा ।अभी भी गांव में इंटरनेट की सुविधा नहीं है और किसान प्रायः कम पढ़े लिखे हैं ।साथ ही किसानों को अपनी फसल की गुणवत्ता का प्रमाण पत्र भी लेना होगा। यह सब उनके लिए दुष्कर कार्य है अतः इसकी सफलता में संदेह है।
दूसरा- किसान कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों )में अपनी फसल बेचते हैं ।वहां आढ़तियों व व्यापारियों की संख्या गिनी चुनी होती है और वे किसानों का शोषण करते हैं ।
-किसान एक छोटी इकाई है और वे आढ़तियों और छोटे व्यापारियों से ही मुकाबला नहीं कर सकते थे तो यह कैसे मान लिया जाए कि वे बड़े कारपोरेट व बड़े व्यापारियों से मुकाबला कर लेंगे ।
तीसरा- इन विधेयकों से बेचने वाले यानी किसान और खरीदने वाले उपभोक्ता व्यापारी और कारपोरेट सभी का फायदा होगा। - यह सरासर झूठ है ऐसा कोई कानून बन ही नहीं सकता जिससे दोनों ही पक्ष को लाभ हो क्योंकि दोनों ही एक दूसरे से जुड़े हैं और एक का लाभ दूसरे की हानि है ।
चौथा- सरकार ने वादा किया है कि मंडियां खत्म नहीं की जाएंगी और न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी की व्यवस्था चलती रहेगी। - वित्त मंत्री जी ने पूर्व में बयान दिया था कि उनकी सरकार मंडियों को खत्म करना चाहती है अतः सरकार की मंशा पर संदेह होना स्वाभाविक है। यदि यह हुआ तो राज्य सरकारों को मंडी द्वारा होने वाली आय भी खत्म हो जाएगी।
किसानों को सबसे अधिक डर इसी बात का है कि धीरे-धीरे मंडियां खत्म कर दी जाएंगी और उन्हें अपने फसल का एमएसपी भी नहीं मिलेगा। उनका यह डर जायज है क्योंकि प्रत्येक सत्ताधारी दल कारपोरेट के साथ खड़ा होता है परंतु वह दिखना किसान के साथ चाहता है ।सन 2012 से लेकर 2020 तक कुछ भी नहीं बदला है ,उस समय भी सत्ता पक्ष इसके समर्थन में था और विपक्ष विरोध में और आज भी यही हालत है। इससे एक बात तो तय है कि किसान का फायदा हो न हो सत्तासीन लोगों का फायदा अवश्य ही है।किसानों की मांग है कि यह नियम बना दिया जाए कि एमएसपी से कम में खरीदी न हो लेकिन सरकार यह मानने को तैयार नहीं है ।इसमें फिलहाल बीच का रास्ता निकाला जा सकता है कि एमएसपी से 10% कम कीमत तक ही खरीदी की जा सकेगी ।दोनों पक्षों को इस पर गंभीरतापूर्वक विचार करना चाहिए। इस विधेयक में एक दिलचस्प प्रावधान है कि विवादों का निपटारा अदालत में न होकर राजस्व न्यायालय यानी एसडीएम और डीएमके कोर्ट में ही होगा और उसे चुनौती भी नहीं दी जा सकेगी। कानून प्रायः मजबूत के साथ और मजबूर के विरुद्ध खड़ा होता है और यहां भी वही होगा। यह क्रांतिकारी विधेयक बिहार में 2006 से लागू है जब यह वहां 14 वर्षों में किसान का भला नहीं कर सका तो यह उम्मीद पूरे देश के लिए करना बेमानी है ।
भारत में लगभग 82% छोटे किसान हैं जिनकी भूमि 5 एकड़ से कम है।कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की कृपा से इन जमीनों के वास्तविक मालिक कारपोरेट होंगे और किसान अपने ही खेत में काम करने वाले मजदूर होंगे।किसानों को समझौता प्रपत्र समझ नहीं आएगा। कारपोरेट इन्हें मुकदमे बाजी में उलझा कर रखेंगे। आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 के खत्म हो जाने से व्यापारी इन फसलों की जमाखोरी कर उनका नियंत्रण अपने हाथ में रखेंगे। विश्व बैंक ने 1998 में भारत सरकार को चेताया था कि 2005 तक 40 करोड़ ग्रामीणों को शहर लाया जाए और देहाती जमीन को शहरी कुशल हाथों में सौंपा जाए। इस कार्य को करने में पूर्व की सरकारें नाकाम रही और इस सरकार ने इसे कर दिखाया। इस विधेयक से यह लाभ होगा कि विश्व बैंक हमारे सरकार की पीठ थप थपायगी कि उसने किसानों की परवाह किए बिना इसे लागू कर दिया। ग्रामीण कृषक जो बाद में मजदूर व मजबूर होंगे शहर का रुख करेंगे और शहरों में सस्ता श्रम उपलब्ध होगा। शायद सरकार की मंशा भी यही है इन विधेयकों में यदि सब कुछ अच्छा है और भविष्य में भी सब कुछ अच्छा होने वाला है तो क्यों सत्तारूढ़ दल की सहयोगी संस्थाएं भी इसका विरोध कर रही हैं।आने वाले समय में गांव की उपजाऊ जमीन कारपोरेट के कुशल परंतु निर्मम हाथों में होगी ।वे दिन दुनी रात चौगुनी तरक्की करेंगे और अपने हितैषियों का पूरा ख्याल रखेंगे ।इन विधेयकों से छोटे और मझोले किसानों की कमर टूट जाएगी और उन्हें कारपोरेट और सरकार के रहमो करम पर ही रहना होगा ।हम समय रहते सचेत हो जाएं यही किसानों के और देश के हित में होगा ।इस विधेयक को पारित करने व लागू करवाने की सत्तापक्ष की बेकरारी से ही किसान भयभीत हैं ।कुछ लम्हों में ही बिना मतदान कराए इसे कानून बना दिया गया। यदि इन विधेयकों को रोका नहीं गया तो भविष्य में यही कहा जाएगा-” नेताओं ने खता की थी किसानों ने सजा पाई है “।
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