एक दैनिक वेतन भोगी की जिंदगी खुली हुई किताब की तरह है जिसे कोई भी पढ़ सकता है समझ सकता है मगर अफसोस कुछ कर नहीं सकता जानते हैं कैसे???
लगभग 15 _20 वर्षों से एक दैनिक वेतन भोगी इस आशा से छत्तीसगढ़ राज्य ग्रामीण बैंक में काम कर रहा है कि आज नहीं तो कल मुझे मेरी पहचान तो मिलेगी अगर मैं पूरी निष्ठा और ईमानदारी से काम करूं तो मेरे परिवार को रोटी और आने वाले कल में मेरे बच्चों को कपड़ा और मकान तो मिलेगा इस आस में न जाने जिंदगी में कितने समझौते किए कभी बैंक में काम करने वाले कर्मचारियों के कपड़े धोए तो कभी उसके घर के लिए सब्जी लाए कभी उसे रोड पर गिरता हुआ देख सही सलामत उनके घर तक छोड़ें कभी ग्राहक शाखा प्रबंधक पर चिल्लाते तो ढाल बनकर मजबूत सीना चौड़ा कर खड़ा हो जाता और अपने शाखा प्रबंधक या अन्य कोई कर्मचारी की जान बचाता वह सब इसलिए करता कि कहीं ना कहीं मानवता इंसानियत की भाषा उसने किताबों में पड़ी थी पर किताबों में लिखी हुए बातें उनके जीवन में कितना रंग लाएगी वह इस बात से अनजान था आप लोगों ने शायद सुना ही होगा बुराई की कद अच्छाई से चाहे कितनी भी ऊंची क्यों ना हो अच्छाई के सामने बहुत छोटी लगती है पर दैनिक वेतन भोगी की जिंदगी में अच्छाइयों का कद बढ़ा है और बुराइयों का कद बहुत छोटा इसीलिए तो आज तक बेचारे इस आस में बंधे हुए हैं कि कहीं किसी शाखा प्रबंधक ने मुझे बैंक से निकाल दिया तो मेरे बच्चों का क्या होगा मेरी पत्नी का क्या होगा मेरे मां-बाप का क्या होगा बहुत सारे सपने लेकर एक दैनिक वेतन भोगी अपने आम जिंदगी जीता है घर की चारदीवारी से बाहर निकल कर बैंक में काम करने वाले सभी कर्मचारियों के बीच अपने सपने सजाता हैं कभी कर्मचारियों की झिड़की सुनाई देता है तो कभी किसी ग्राहक की झिड़की सुनाई देता है तो कभी शाखा प्रबंधक की गाली सुनने को मिलता है तो कभी दुर्घटना के शिकार हो जाते हैं।। शौचालय की सफाई करने के साथ-साथ ऑफिस की सफाई फाइलों का सही तरीके से रखरखाव कार्यालय में लोगों के साथ अपना संबंध बनाकर रखना इत्यादि बहुत सारे ऐसे काम जिसे हम देखते तो हैं पर महसूस नहीं करते दुख इस बात का रहता है की पूरी निष्ठा से काम करने के बाद भी आज जीवन पर्यंत तक एक दैनिक वेतन भोगी को अपनी पहचान भी नहीं मिल पाई और तो और उस पर भी कुठाराघात कि आज बैंक प्रबंधन के द्वारा प्लेसमेंट एजेंसी में जबरदस्ती फार्म भरवाया जा रहा है जिसके बाद एक दैनिक वेतन भोगी का नाम भी मिट जाएगा इसके बावजूद बैंक प्रबंधन के साथ लड़ने वाले प्रबुद्ध यूनियन के समस्त पदाधिकारी दैनिक वेतन भोगी पर हो रहे शोषण और अत्याचार के खिलाफ आज मौन हैं।।
अब ऐसे में एक दैनिक वेतन भोगी क्या करे