शहादत के वक़्त बाबू गेनू की उम्र सिर्फ 22 साल की थी.
अंग्रेजों से लड़ाई में न जाने कितने ज्ञात-अज्ञात लोगों ने प्राणों की आहुति दी है. छोटे-बड़े अनगिनत क्रांतिकारियों की शहादत ने आज़ादी की लड़ाई में अपना-अपना कीमती योगदान दिया है. ऐसे ही एक शहीद को महाराष्ट्र में तो पूरा सम्मान हासिल है लेकिन शेष भारत में उन्हें ज़्यादा लोग नहीं पहचानते. हम बात कर रहे हैं महज़ 22 साल की उम्र में स्वदेशी आंदोलन में अपनी जान दे चुके बाबू गेनू सैद की.
बाबू गेनू का जन्म 1902 में पुणे जिले के गांव महालुंगे पड़वल में हुआ. घनघोर गरीबी में पले-बढ़े बाबू गेनू के पिता का उनके बचपन में ही देहांत हो गया था. मां कपड़ा मिल में मजदूरी करने लगीं. जब बाबू गेनू बड़े हो रहे थे उस वक़्त देश में अंग्रेजों की मुखालफत ज़ोरों पर थी. बाबू गेनू भी आंदोलन में हिस्सा लेने लगे. साइमन कमीशन के विरोध में जुलूस भी निकाला. 1930 में हुए गांधी जी के नमक सत्याग्रह में भी हिस्सा लिया. दो बार जेल गए.
साइमन कमीशन के विरोध में निकला जुलूस.
वो घटना जिसमें उनकी शहादत हुई
उन दिनों स्वदेशी चीज़ें इस्तेमाल करने का आंदोलन उफान पर था. विदेशी माल का देशभर में बहिष्कार हो रहा था. 12 दिसंबर 1930. मुंबई के कालबादेवी इलाके में एक गोदाम था. आंदोलनकारियों को ख़बर मिली कि वहां से विदेशी माल लेकर दो ट्रक मुंबई की ही कोर्ट मार्केट जाएंगे. इस काम को रोकने की ज़िम्मेदारी बाबू गेनू और उनके दल ‘तानाजी पथक’ के सर आ गई. हनुमान रोड पर इसे रोकने का इरादा बना. भनक पाते ही वहां भीड़ भी इकठ्ठा हो गई.
अंग्रेज़ अफसर फ्रेज़र को भी इसकी भनक लग गई. उसने भारी तादाद में पुलिस बुला ली. सारे क्रांतिकारी ट्रक के रास्ते में खड़े हो गए. पुलिस उन्हें खींच-खींच कर दूर करती रही. क्रांतिकारी फिर आते रहे. आख़िरकार फ्रेज़र चिढ़ गया. ट्रक के आगे तनकर खड़े बाबू गेनू को उसने परे हटाना चाहा. वो नहीं हटे तो उसने ट्रक ड्राइवर से कहा ट्रक चला दो. कोई मरता है तो मर जाने दो. ड्राइवर की हिम्मत नहीं हुई. गुस्से में उफनते अंग्रेज़ अफसर ने उसे स्टीयरिंग से धक्का देकर हटा दिया और खुद स्टीयरिंग संभाल ली. बाबू गेनू सीना तानकर खड़े रहे. फ्रेज़र ने ट्रक चला दिया. ट्रक बाबू गेनू को कुचलता हुआ गुज़र गया. सड़क ख़ून से तरबतर हो गई.
इस घटना ने मुंबई में हाहाकार मचा दिया. बाबू गेनू को तब तक कोई नहीं जानता था, उसके बाद हर एक की ज़ुबान पर उनका नाम चढ़ गया. उनके अंतिम संस्कार में भारी जनसमूह उमड़ा. कन्हैया लाल मुंशी, लीलावती मुंशी, जमनादास मेहता जैसे बड़े-बड़े नेता भी आए. कस्तूरबा गांधी उनके घर गईं और उनकी मां को सांत्वना दी. जहां उनकी मौत हुई उस जगह का नाम गेनू स्ट्रीट रख दिया गया. उनके गांव में उनकी मूर्ति लगा दी गई