तुरंत प्रभाव से नियमों की वापसी की माँग की
अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) ने भविष्य निधि संगठन (EPFO) द्वारा जारी किए गए नए निकासी नियमों पर कड़ा एतराज़ जताया है और उनकी तत्काल समाप्ति की माँग की है। नए नियमों के अनुसार, कर्मचारियों की बचत का 25% न्यूनतम शेष राशि के रूप में रखना अनिवार्य होगा। इसके अतिरिक्त, अंतिम पीएफ निकासी के लिए 12 महीने की लगातार बेरोज़गारी और अंतिम पेंशन निकासी के लिए 36 महीने की लगातार बेरोज़गारी की शर्तें रखी गई हैं। ये नियम पूर्णतः दमनकारी हैं।
सरकार द्वारा इन प्रतिबंधों को लागू करने के लिए दी गई “सेवानिवृत्ति सुरक्षा” की दलील अस्वीकार्य है। बेरोज़गार व्यक्ति के सामने वित्तीय संयम की बात करना एक क्रूर मज़ाक है। ईपीएफओ के आँकड़ों के अनुसार, 87% सदस्यों के खाते में ₹1 लाख से कम राशि है और इनमें से 50% के पास ₹20,000 से भी कम है। यह स्वयं कर्मचारियों की वित्तीय स्थिति का प्रमाण है। “एक ही आकार सब पर लागू” का सिद्धांत यहाँ लागू नहीं हो सकता। अधिकांश सदस्यों की वित्तीय अस्थिरता का कारण उनकी कम मज़दूरी है। ऐसे में बचत का 25% हिस्सा न्यूनतम शेष के रूप में रोकना केवल कमज़ोरों का शोषण है। अधिकांश कर्मचारियों के लिए यह तथाकथित सुरक्षित राशि इतनी कम है कि यह सेवानिवृत्ति सुरक्षा नहीं दे सकती, परंतु इतनी बड़ी है कि उसे न मिलने से गहरी आर्थिक परेशानी होती है।
नौकरियों के नुकसान, बार-बार रोजगार बदलने की प्रवृत्ति, अस्थिर आय, आसमान छूती महंगाई, शिक्षा व स्वास्थ्य की बढ़ती लागत — ये सभी कारण कर्मचारी को मजबूर करते हैं कि वह अपनी बचत का उपयोग करे। ऐसे में निकासी की अवधि बढ़ाना और एक हिस्से को “सेवानिवृत्ति सुरक्षा” या “आवेगपूर्ण निकासी रोकने” के नाम पर रोकना अन्यायपूर्ण है। प्रत्येक व्यक्ति को अपनी मेहनत की कमाई पर पूर्ण अधिकार है। राज्य द्वारा कर्मचारियों की बचत पर जबरन नियंत्रण कर एक कोष बनाना ‘चोरी’ के समान है।
सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि नए नियमों के तहत ‘पूर्ण निकासी’ का अर्थ है पात्र राशि का केवल 100% हिस्सा — इसमें रोकी गई 25% न्यूनतम शेष राशि शामिल नहीं है। जिन नियमों को वित्तीय अनुशासन बढ़ाने के उद्देश्य से लागू किया गया बताया जा रहा है, वे औसत वेतनभोगी व्यक्ति की वास्तविक जीवन स्थितियों और तार्किकता की कसौटी पर बुरी तरह असफल हैं।
एआईटीयूसी का मानना है कि ईपीएफओ के ये संशोधित नियम अव्यावहारिक और तर्कहीन हैं। “गैर-मौजूद कोष की रक्षा” के नाम पर बेरोज़गारों को “सहायता” देने का दावा वास्तव में उनके बचत पर अधिकार से वंचित करना है। यह बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। एआईटीयूसी केंद्रीय न्यासी मंडल (CBT) से अपील करती है कि बिना किसी विलंब के इन अधिसूचनाओं को तुरंत वापस लिया जाए।