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पार्टी आलाकमान ने कमलनाथ को सक्रिय किया तो प्रदेश में लोस की आ सकती हैं आधी सीटें”

“क्या मध्यप्रदेश में लोकसभा सीटों का सूखा समाप्त कर पाएगी कांग्रेस की वर्तमान टीम?
पार्टी आलाकमान का अनुभवी नेताओं को दरकिनार करने का फैसला कहीं उलटा न पड़ जाए
पार्टी आलाकमान ने कमलनाथ को सक्रिय किया तो प्रदेश में लोस की आ सकती हैं आधी सीटें”

-विजया पाठक (एडिटर, जगत विजन)
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मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव के बाद अब सभी राजनैतिक दलों की निगाहें लोकसभा चुनाव में अटकी हुई हैं। प्रदेश में सक्रिय दो प्रमुख राजनैतिक दल कांग्रेस और भाजपा ने अपनी तैयारियों को आकार देना भी आरंभ कर दिया है। अगर हम दोनों ही पार्टियों में तैयार हो रही रणनीति का आंकलन करें तो अब तक यही समझ आया है कि भारतीय जनता पार्टी का पलड़ा भारी है। उसका एक कारण यह भी हो सकता है कि भाजपा एक तरफ जहां अंदरखाने की अपनी तैयारियों को मजबूती देने में जुटी हुई है, वहीं कांग्रेस में फिलहाल तैयारियों को लेकर कोई खास सुगबुगाहट समझ नहीं आ रही है। राजनैतिक दलों के विशेषज्ञ इस बात का अंदाजा लगा रहे हैं कि अगर कांग्रेस ने इतनी धीमी गति से अपनी तैयारियों को अंतिम रूप देने का काम किया तो निश्चित ही वह लोकसभा चुनाव में अधिकतम सीटें लाने में सफल नहीं हो पाएगी।

लोस सीटें जीतना है तो कमलनाथ को प्रदेश में देनी होगी बड़ी जिम्‍मेदारी
पिछले एक दशक से मध्यप्रदेश में कांग्रेस के कददावर नेता कमलनाथ सक्रिय हैं। इनकी सक्रियता ने प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता तक भी पहुंचाया। जिस समय कमलनाथ प्रदेश में आये तो उस समय कांग्रेस राज्य से एकदम खत्म थी। कांग्रेस गुटों में बंटी थी, चरम पर बिखराव था। कांग्रेस के अंदर कोई भी नेता ऐसा नहीं था जो कांग्रेस को एकजुट रख सके। लगभग सभी नेता अपने-अपने स्वार्थ को सिध्द करने में लगे थे। लेकिन जैसे ही कमलनाथ को कांग्रेस हाईकमान ने पार्टी की कमान सौंपी पार्टी के अंदर एक नई उर्जा का संचार हुआ। पार्टी पदाधिकारियों से लेकर आम कार्यकर्ताओं में भी एक उत्साह पैदा हो गया। कहा जा सकता है कि आज प्रदेश में कांग्रेस जिंदा है या सक्रिय है तो उसक पीछे कमलनाथ ही हैं। आलाकमान इस बात को भूल गया कि कांग्रेस को मध्यप्रदेश में पुनः जीवित करने का जो कार्य कमलनाथ ने किया था वह कार्य शायद ही कोई दूसरा नेता कर पाता। इसके साथ ही कमलनाथ के प्रदेश अध्यक्ष न होने से प्रदेश में लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को नुकसान होने की आशंका है। कमलनाथ की उपेक्षा कांग्रेस को आगामी समय में भारी पड़ने वाली है। उनकी नेतृत्व क्षमता और प्रबंधन के गुण निश्चित ही लाभदायक थे। उनमें पार्टी को एक साथ लेकर चलने का अदभुत प्रतिभा थी। उनके कार्यकाल में प्रदेश के अंदर पार्टी में किसी भी प्रकार की गुटबाजी नहीं रही। वह सबको साथ लेकर चले। सबको अपनी क्षमता के अनुसार काम भी सौंपे। साथ ही प्रदेश में कमलनाथ के नेतृत्व में कांग्रेस ताकतवर पार्टी बनकर उभरी है। वह कांग्रेस कभी बिखरी थी और नेतृत्व की कमी से जूझ रही थी उसे कमलनाथ ने एक धागे में पिरोया। आज कांग्रेस भले ही चुनाव हार गई हो लेकिन प्रदेश में सरकार बनाने के लिए बीजेपी को ऐड़ी चोटी का दाव लगाने पर मजबूर कर दिया। कमलनाथ का कुशल प्रबंधन और मार्गदर्शन देखने को मिला। कमलनाथ ने न सिर्फ प्रदेश में कांग्रेस का सूखा वर्ष 2018 के चुनाव में जीत दर्ज कर खत्म किया था बल्कि लगातार चार वर्ष तक विपक्ष में बैठकर उन्होंने एक धारदार विपक्षी दल की भूमिका भी निभाई।

  कमलनाथ कुशल प्रबंधक और नेतृत्वकर्ता हैं। एक ईमानदार नेता की छबि प्रदर्शित की है। उन्‍होंने हमेशा स्‍वयं के हित से ज्‍यादा पार्टी के हितों की बात की है। ऐसे कई अवसर आये हैं जब कमलनाथ ने इस बात का परिचय भी दिया है। निश्चित ही अगर पार्टी हाईकमान लोकसभा चुनाव में कमलनाथ को सक्रिय करती है तो लोकसभा की आधी सीटें जीतने में कामयाब हो सकती है। इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि बीजेपी में भी इस समय गुटबाजी कम नहीं है। इस गुटबाजी का फायदा केवल कमलनाथ के नेतृत्‍व में ही लिया जा सकता है। प्रदेश में लोस की सीटें जीतना चाहती है तो कमलनाथ को बड़ी जिम्मेदारी देनी होगी।

अनुभवी लीडरशिप की कमी
देखा जाए तो कांग्रेस पार्टी में सक्रिय और जुझारू नेताओं की कमी नहीं है। हर नेता अपने आप में काबिल है। यही नहीं नेताओं में आपसी सामंजस्‍य जिस स्तर का दिखाई दे रहा है उसको देखकर कहा जा सकता है कि यह पार्टी आने वाले लोकसभा चुनाव में भाजपा को कड़ी टक्कर दे सकती है। लेकिन कहीं न कहीं पार्टी आलाकमान को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए युवा नेतृत्व के साथ-साथ अनुभवी नेतृत्वकर्ता का तालमेल ही आपको बड़े से बड़े संघर्ष में जीत दिलाने में मदद करता है। लेकिन आलाकमान ने इस पर अब तक कोई निर्णय लेना उचित नहीं समझा।

भाजपा की तैयारियां हैं जोरों पर
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में जीत का परचम लहराने के बाद भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने थोड़ा भी ठहरना उचित नहीं समझा और पार्टी के नेता और कार्यकर्ता निरंतर लोकसभा की तैयारियों में जुट गये हैं। सूत्रों के अनुसार भाजपा ने जमीनी स्तर पर अपनी पकड़ को मजबूत बनाने, बूथ लेवल पर कार्यकर्ता की पहुंच जैसी कई महत्वपूर्ण रणनीतियां तय की हैं। यही नहीं शीर्ष भाजपा दल ने विकसित भारत संकल्प यात्रा को गांव-गांव घर-घर तक पहुंचाने की जिस रणनीति पर काम किया है, निश्चित ही वह रणनीति आने वाले समय में पार्टी के लिये लाभदायक साबित हो सकती है।

कमलनाथ-दिग्विजय और गोविंद जैसे अनुभव की जरूरत
कांग्रेस पार्टी वह दल है, जिसमें शामिल अनुभवी नेताओं ने मप्र ही नहीं बल्कि दूसरे राज्यों में भी भाजपा को पटकनी दी है। लेकिन इसके लिये आवश्यक यह रहा है कि शीर्ष नेतृत्व पूरी कार्ययोजना बनाकर लोगों को जिम्मेदारी सौंपे। अगर हम मप्र की बात करें तो प्रदेश कांग्रेस के पास कमलनाथ, दिग्विजय और गोविंद सिंह जैसे वरिष्ठ नेताओं की एक टीम है। जिनके अनुभवों का लाभ लेते हुए पूरी रणनीति तैयार की जा सकती है। लेकिन फिलहाल कांग्रेस में ऐसा कुछ होता दिखाई नहीं दे रहा है। मुझे याद आता है कि वर्ष 2018 के पहले का वर्ष जब कांग्रेस पार्टी ने कमलनाथ के हाथ में नेतृत्व सौंपा था तो पार्टी में एक बदलाव की उम्मीद जागी थी। कमलनाथ ने पुरजोर कोशिश की और अपने अनुभव और रणनीति के आधार पर सत्ता परिवर्तन करने में सफलता भी प्राप्त की। लेकिन वर्तमान परिस्थितियों में कांग्रेस पार्टी उनके अनुभवों का लाभ लेते दिखाई नहीं पड़ रही है।

लोकसभा चुनाव में क्या होगी रणनीति?
लोकसभा चुनाव में महज तीन महीने से भी कम समय बचा है। ऐसे में कांग्रेस की क्या रणनीति होगी फिलहाल इसके बारे में कुछ कह पाना मुश्किल है। लेकिन यह कहा जा सकता है कि अभी भी समय है। अगर आलाकमान एक बार फिर से गंभीरता से विचार करते हुए युवाओं के साथ अनुभवी नेताओं को रणनीतिकार बना ले तो निश्चित ही मध्यप्रदेश में लोकसभा सीटों का जो सूखा कांग्रेस पार्टी के खाते में है उसे कई हद तक दूर किया जा सकता है। और यह सब तभी संभव होगा जब पार्टी पूरे एकमत के साथ कार्य करेगी और मजबूती दिखाएगी।

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