भिलाई।भिलाई हाउसिंग बोर्ड क्षेत्र में नाले के पास, प्रधानमंत्री आवास योजना के समीप एवं कचरा भट्टी के बाजू स्थित वार्ड क्रमांक 25 की खाली पड़ी सरकारी जमीन पर बने गुरु रविदास गुरुघर को नगर निगम द्वारा अचानक तोड़ दिए जाने से रविदासिया समाज में भारी आक्रोश व्याप्त है। समाज के लोगों का आरोप है कि यह कार्रवाई बिना किसी पूर्व सूचना या वैकल्पिक व्यवस्था के की गई, जिससे उनकी धार्मिक भावनाओं को गहरी ठेस पहुंची है।
स्थानीय नागरिकों के अनुसार, बीते 10–12 वर्षों से इसी स्थान पर गुरु रविदास जयंती एवं धार्मिक आयोजन नियमित रूप से आयोजित किए जाते रहे हैं। यह गुरुघर केवल भिलाई ही नहीं, बल्कि छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार सहित अन्य राज्यों से आने वाले रविदास अनुयायियों के लिए एक प्रमुख आस्था केंद्र बन चुका था। इसके बावजूद नगर निगम द्वारा अचानक की गई तोड़फोड़ ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं।
नगर निगम पर भेदभाव का आरोप
रविदासिया समाज ने नगर निगम पर दोहरे मापदंड अपनाने का गंभीर आरोप लगाया है। समाज का कहना है कि इसी क्षेत्र की अन्य खाली सरकारी जमीनों पर बने बौद्ध विहार, हनुमान मंदिर, राम मंदिर, बजरंगबली मंदिर तथा दक्षिण भारतीय संप्रदाय के बड़े देवस्थानों पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। ऐसे में केवल गुरु रविदास गुरुघर को ही हटाया जाना भेदभावपूर्ण और पक्षपातपूर्ण प्रतीत होता है।
समाज के प्रतिनिधियों का कहना है कि यदि सरकारी भूमि से अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई करनी है, तो वह सभी धर्मों और समुदायों पर समान रूप से लागू होनी चाहिए। किसी एक समुदाय की धार्मिक संरचना को चुनकर तोड़ना संविधान की समानता की भावना के विरुद्ध है।
जनप्रतिनिधियों की मौजूदगी के बावजूद कार्रवाई
रविदासिया समाज ने यह भी सवाल उठाया है कि जब इसी स्थल पर बीते वर्षों में स्थानीय विधायक रिकेश सेन सहित कई जनप्रतिनिधि गुरु रविदास जयंती कार्यक्रमों में शामिल होते रहे हैं, तब बिना किसी पूर्व सूचना गुरुघर को ध्वस्त करना समझ से परे है। पूर्व में जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़ के नेता अमित जोगी सहित अन्य राजनीतिक व सामाजिक नेताओं की मौजूदगी भी इस गुरुघर की सामाजिक मान्यता को दर्शाती है।
जांच और कार्रवाई की मांग
घटना से आक्रोशित समाज के लोगों ने राज्य सरकार, जिला प्रशासन एवं नगर निगम से तत्काल स्पष्टीकरण की मांग की है। साथ ही, पूरे मामले की उच्चस्तरीय जांच कराकर जिम्मेदार अधिकारियों पर सख्त कार्रवाई की मांग की गई है।
समाज ने चेतावनी दी है कि यदि जल्द ही संतोषजनक जवाब और न्याय नहीं मिला, तो वे आंदोलनात्मक कदम उठाने को बाध्य होंगे। अब बड़ा सवाल यह है कि यह कार्रवाई प्रशासनिक लापरवाही का परिणाम थी या किसी दबाव में लिया गया पक्षपातपूर्ण निर्णय—जिसका जवाब प्रशासन को देना ही होगा।

