बालोद/ लोकसभा चुनाव की सुगबुगाहट अब प्रारंभ हो चुकी है। प्रदेश में तैयारी के हिसाब से भारतीय जनता पार्टी काफी आगे निकल चुकी है।कांग्रेस एक और जहां विधानसभा चुनाव में अपनी तगड़ी हार से नहीं उबर पाई है वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के कार्यकर्ताओं में जोश भरने वाला कोई नेता नजर नहीं आ रहा है। आगामी लोकसभा को लेकर भाजपा मार्च के पहले सप्ताह में प्रत्याशियों की पहली सूची लाने की तैयारी में है। कल देर रात रायपुर स्थित प्रदेश भाजपा कार्यालय में चुनाव समिति की बैठक संपन्न हुई और आज दिल्ली में भी छत्तीसगढ़ के बड़े नेताओं के साथ राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बी. एल. संतोष सहित केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक होगी।
सूत्रों के अनुसार अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए आरक्षित कांकेर सीट जो की कांकेर जिला के तीन विधानसभा कांकेर, भानुप्रतापपुर और अंतागढ़ ,बालोद जिला के तीन विधानसभा बालोद, गुण्डरदेही और डौंडी लोहारा, धमतरी जिला का एक विधानसभा सिहावा और कोंडागांव जिले का एक विधानसभा केशकाल से मिलकर बना है, को लेकर चार नाम प्रमुखता से सामने आ रहा है।
पहला नाम वर्तमान सांसद मोहन मंडावी का है जो क्षेत्र में रामायणी के रूप में प्रसिद्ध हैं परंतु अपने कार्यकाल में कुछ खास उपलब्धि क्षेत्र को नहीं दिला पाए। संसदीय क्षेत्र में सबसे अधिक दौरा तथा अपने सांसद निधि का सबसे ज्यादा उपयोग बालोद जिला में करने के बाद भी यहां से एक भी विधानसभा सीट ना जीता पाना इनके लिए भारी पड़ सकता है। इसके अलावा बाकी क्षेत्रों की अनदेखी का भी इनको नुकसान हो सकता है।

 दूसरा नाम अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष विकास मरकाम का है। अपने मोर्चे को पूरे प्रदेश में सक्रिय करके विधानसभा चुनाव के पूर्व आदिवासी पुरखौती सम्मान यात्रा निकालकर ये भाजपा के बड़े नेताओं के विश्वासपात्र बन चुके हैं। विधानसभा चुनाव में सिहावा विधानसभा क्षेत्र से इनकी प्रबल दावेदारी सामने आई थी परंतु बालोद जिला के कुलिया गांव के मूल निवासी होने के कारण इन्हें टिकट नहीं मिल पाया था। जहां एक ओर प्रखर वक्ता होने के कारण विधानसभा चुनाव के दौरान भाजपा द्वारा बस्तर के पूरे जिलों में इनका प्रेस कॉन्फ्रेंस आयोजित करवाया गया था, इसका उन्हें अवश्य फायदा होगा लेकिन दूसरी ओर कांकेर लोकसभा क्षेत्र में कम सक्रियता  खिलाफ जा सकता है, विकास मरकाम प्रदेश भर में अपनी राजनीतिक गतिविधियां संचालित करते है इसलिए उनकी छवि प्रदेश स्तरीय नेता की अधिक है।
 तीसरा प्रमुख नाम पूर्व विधायक भोजराज नाग का है क्षेत्र में हिंदुत्व वादी चेहरे के रूप में इनकी पहचान है। जनजाति सुरक्षा मंच के प्रदेश संयोजक होने के नाते मिशनरी एवं धर्मांतरण के खिलाफ काम कर रहे हैं और पूरे प्रदेश में डी- लिस्टिंग के खिलाफ रैली का सफल आयोजन करने के कारण संघ की पहली पसंद है। हालांकि भाजपा कैडर को साथ लेकर ना चलना, अपने विधायक काल में कार्यकर्ताओं की उपेक्षा के आरोप इन पर लगते रहे है। भाजपा का ही एक वर्ग इन्हें महाराष्ट्रीयन गोंड कहकर बाहरी बताता है जिसका नुकसान इन्हें हो सकता है। साथ ही यदि नए चेहरे पर दाव लगाया जाता है तब भी ये दौड़ से बाहर हो जायेंगे।

पैनल में चौथा नाम पूर्व विधायक श्रीमती सुमित्रा मारकोले का है। अपने सौम्य व्यवहार के कारण कार्यकर्ता इनको पसंद करते हैं परंतु इनकी पहचान कांकेर जिला तक की सीमित है। जहां एक और इन्हें महिला होने का फायदा मिल सकता है वही दूसरी ओर अजजा मोर्चा की प्रदेश उपाध्यक्ष होने के बाद भी अन्य आदिवासी क्षेत्रों में अपनी पहचान ना बना पाने का नुकसान इन्हें उठाना पड़ सकता है। हालांकि यदि महिला प्रत्याशी को उतारने का फैसला किया गया तो उनका नाम सबसे आगे है।

ये तो रहे संभावित नाम लेकिन प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा के शीर्ष नेतृत्व नए नामों के साथ हमेशा ही विश्लेषकों को चौंकाते रही है यदि इस लोकसभा चुनाव में भी प्रत्याशी के चयन में कोई चौकाने वाला नाम जारी करे तो इसमें अचरज नहीं होगा।

प्रदेश में सत्तारूढ़ भाजपा के प्रत्याशी चयन में इस बार कड़ा मुकाबला दिखाई दे रहा है परंतु सूत्रों के अनुसार किसी ने फ्रेश चेहरे पर ही दांव लगाया जाएगा। अब देखना होगा कि भाजपा गोंड या महाराष्ट्रीयन गोंड अथवा कांकेर या बालोद जिला में से कहां के निवासी को अपना उम्मीदवार तय करती है?