भारत की सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक चेतना को नई दिशा देने वाले, संविधान-शिल्पी और युगद्रष्टा डॉ. भीमराव रामजी अंबेडकर का जीवन केवल इतिहास नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन का जीवंत मार्गदर्शन है। शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का मूल मंत्र मानने वाले बाबासाहेब ने ज्ञान को मानव-मुक्ति का सर्वोत्तम साधन बताया। उन्होंने वंचित, श्रमिक, किसान और कमजोर वर्गों को अधिकार देकर सामाजिक न्याय का सर्वोच्च आदर्श स्थापित किया।
शिक्षा : क्रांति का प्रारंभ-बिंदु
बाबासाहेब स्वयं इस बात का उदाहरण थे कि शिक्षा व्यक्ति की नियति और समाज की दशा दोनों बदल सकती है। कठिन परिस्थितियों में अध्ययन कर विश्व के श्रेष्ठ विद्वानों की पंक्ति में स्थान प्राप्त करना उनके अदम्य संकल्प का परिचायक है।
उनका नारा “शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो” आज भी करोड़ों भारतीयों के लिए प्रेरणा-स्रोत है।
सामाजिक न्याय का सर्वोच्च आदर्श
भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों, समता के सिद्धांत, स्वतंत्रता, सामाजिक सुरक्षा और न्याय के प्रावधान उनके दूरदर्शी चिंतन की देन हैं।
उन्होंने श्रमिकों के लिए श्रम कानूनों में सुधार, महिलाओं के लिए समान अधिकार, किसानों के लिए सुधारवादी नीतियों की नींव रखकर भारत के सामाजिक ढांचे को न्यायपूर्ण बनाया।
उनके प्रयासों से समाज के वंचित वर्ग को नई पहचान, नए अधिकार और नया आत्मविश्वास मिला।
समता और बंधुता की नींव पर आधुनिक भारत
अंबेडकर ऐसे भारत का सपना देखते थे जहाँ सामाजिक भेदभाव का समूल अंत हो, सभी नागरिक समान अवसरों के साथ आगे बढ़ें, और बंधुता की भावना से एक-दूसरे को सहारा दें।
उन्होंने कहा था— “समाज यदि बंधुता नहीं अपनाएगा, तो लोकतंत्र टिक नहीं सकता।”
आज भारतीय लोकतंत्र जिस मजबूती से खड़ा है, उसके मूल में बाबासाहेब की यही विचारधारा है।
सागर-सा व्यक्तित्व, हिमालय-सा कार्य
डॉ. अंबेडकर का व्यक्तित्व बहुआयामी था—
- वे अर्थशास्त्री थे,
- विधिवेत्ता और न्यायशास्त्री थे,
- समाज सुधारक और चिंतक थे,
- लेखक, अध्यापक और प्रेरक मार्गदर्शक थे।
उनका योगदान श्रम नीति, शिक्षा नीति, विधिक सुधार, महिला अधिकार, सामाजिक सुरक्षा, वित्तीय व्यवस्था, जल प्रबंधन और भारतीय लोकतंत्र की मूल संरचना तक फैला हुआ है।
महापरिनिर्वाण दिवस : उनके विचारों के प्रति नमन
6 दिसंबर 1956 का दिन भारत के इतिहास में एक अविस्मरणीय तिथि है—
यह वह दिन है जब सामाजिक न्याय के महान पुरोधा, मानव अधिकारों के प्रहरी और बहुजन समाज के पथप्रदर्शक बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर ने देह का त्याग कर महापरिनिर्वाण प्राप्त किया।
यह दिन केवल श्रद्धांजलि का नहीं, बल्कि उनकी शिक्षाओं, संघर्षों और सिद्धांतों को आत्मसात करने का संकल्प-दिवस है।
हर वर्ष करोड़ों लोग इस दिन मुंबई के दादर स्थित चैत्यभूमि पर एकत्र होकर उन्हें नमन करते हैं और सामाजिक समता के उनके मिशन को आगे बढ़ाने का प्रण लेते हैं।
लोकसेवा का अनन्त आदर्श
बाबासाहेब ने अपने जीवन से यह संदेश दिया कि समाज की प्रगति केवल विकास से नहीं, बल्कि न्याय, मानवता और समता से होती है।
उनका जीवन हमें प्रेरित करता है कि—
- कमजोरों को अधिकार देना ही सच्चा राष्ट्रधर्म है,
- शिक्षा ही सामाजिक उत्थान का मार्ग है,
- और लोकतंत्र तभी जीवित है, जब उसमें न्याय और बंधुता का भाव हो।
बाबासाहेब अंबेडकर का जीवन, विचार और महापरिनिर्वाण दिवस हमें याद दिलाते हैं कि न्यायपूर्ण, समतामूलक और शिक्षित भारत ही वास्तविक स्वतंत्र भारत है।
उनका योगदान युगों-युगों तक राष्ट्र को दिशा देता रहेगा।

