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लाला कमलापत सिंघानिया : स्वदेशी की भावना से जन्मी एक महान औद्योगिक विरासत खड़ा किए।

दुर्ग अहिवारा,भारत की औद्योगिक प्रगति की कहानी केवल फैक्ट्रियों, उत्पादन या आर्थिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं है—यह उन दूरदर्शी व्यक्तियों की जीवंत गाथा भी है जिन्होंने राष्ट्रनिर्माण को अपने जीवन का उद्देश्य बनाया। इन्हीं महान व्यक्तित्वों में एक अग्रणी नाम है लाला कमलापत सिंघानिया, जिनके जन्मदिन पर आज हम न सिर्फ उन्हें याद करते हैं, बल्कि उनकी उस विरासत को भी नमन करते हैं, जिसने भारत के औद्योगिक इतिहास को नई दिशा दी।

जेके लक्ष्मी सीमेंट और जेके ऑर्गनाइजेशन की नींव लाला जुग्गीलाल सिंघानिया और लाला कमलापत सिंघानिया ने रखी। वर्ष 1918 में स्थापित यह समूह केवल एक व्यवसायिक संस्था नहीं था, बल्कि एक ऐसा स्वदेशी संकल्प था जिसने देश में आत्मनिर्भर औद्योगिक संस्कृति को जन्म दिया। यह वह दौर था जब भारत अंग्रेज़ी शासन की आर्थिक नीतियों के बोझ तले कराह रहा था। ऐसे समय में, महात्मा गांधी के स्वदेशी आंदोलन ने देशवासियों में यह विश्वास जगाया कि “भारतीयों की जरूरतों का समाधान भारतीय उद्यमों से ही निकल सकता है।”

इसी विचारधारा से प्रेरित होकर लाला कमलापत सिंघानिया ने उद्योग को केवल लाभ का माध्यम नहीं, बल्कि राष्ट्रसेवा का मंच माना। उन्होंने अपने पिता लाला जुग्गीलाल सिंघानिया के साथ मिलकर उद्योगों का ऐसा नेटवर्क खड़ा किया जिसने जल्द ही भारतीय बाज़ार में “जेके” को विश्वास और गुणवत्ता का पर्याय बना दिया। उनके नेतृत्व में विकसित व्यवसायिक इकाइयों ने बाद में सीमेंट, टेक्सटाइल, पेपर, रबर, टायर और कई अन्य क्षेत्रों में भारतीय अर्थव्यवस्था को संबल दिया।

लाला कमलापत सिंघानिया की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वह औद्योगिक प्रबंधन को सामाजिक उत्तरदायित्व से जोड़कर देखते थे। शिक्षा, रोजगार, सामाजिक उत्थान और कुटीर उद्योगों को प्रोत्साहित करना उनकी प्राथमिकताओं में शामिल था। वे मानते थे कि उद्योग तभी सफल है जब उसके लाभ का असर आम भारतीयों के जीवन तक पहुँचे।

आज जेके लक्ष्मी सीमेंट और जेके ऑर्गनाइजेशन भारत की औद्योगिक पहचान का प्रतीक है। इसकी सफलता इस बात का प्रमाण है कि दूरदर्शिता, स्वदेशी आत्मविश्वास और राष्ट्रहित की भावना मिलकर क्या कुछ बना सकती है।

लाला कमलापत सिंघानिया के जन्मदिन पर हम उनकी महान दृष्टि को नमन करते हैं—
यह दृष्टि हमें याद दिलाती है कि आत्मनिर्भर भारत कोई नई परिकल्पना नहीं, बल्कि उन महान भारतीयों का सपना है जिन्होंने इसे सौ वर्ष पहले ही अपने कर्मों से साकार करने की पहल की थी।

उनका जीवन और योगदान हर भारतीय उद्यमी के लिए प्रेरणा हैं।

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