देश में आर्थिक समूह के संगठन स्वदेशी जागरण मंच ने भारत में घटती हुई टोटल फर्टिलिटी रेट यानी शुद्ध प्रजनन दर पर चिंता व्यक्त की है। स्वावलंबन केंद्र, करणी नगर, जोधपुर में आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में भूमिका रखते हुए स्वदेशी जागरण मंच के प्रांत सह प्रचार प्रमुख राधेश्याम बंसल ने कहा कि किसी भी देश की टोटल फर्टिलिटी रेट यानी शुद्ध प्रजनन दर वह दर होती है जिस दर से एक महिला अपने जीवन में औसत बच्चों को जन्म देती है।
1960 में जहां यह टोटल फर्टिलिटी रेट 6 तथा 1964 में 4 के आसपास थी। उस समय जनसंख्या विस्फोट के खतरे के चलते जिसे तुरंत कम किए जाने की आवश्यकता थी। जिसके चलते जनसंख्या नियंत्रण के तमाम प्रयास तत्कालीन सरकारों ने किये।
1990 में यह तय किया गया कि 2.1 की टोटल फर्टिलिटी रेट यानी शुद्ध प्रजनन दर को मेंटेन किया जाएगा। 2.1 की शुद्ध प्रजनन दर वह दर है जहां देश की कुल आबादी तथा युवा आबादी स्थिर रहती है। भारत की वर्तमान टी एफ आर दो से भी नीचे चली गई है जो आने वाले भविष्य के लिए चिंता का विषय है।
घटती प्रजनन दर के आर्थिक दुष्प्रभावों की चर्चा करते हुए स्वदेशी जागरण मंच के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख डॉ धर्मेंद्र दुबे ने कहा कि स्वदेशी जागरण मंच की शोध इकाई स्वदेशी शोध संस्थान पिछले तीन वर्षों से गिरती हुई टोटल फर्टिलिटी रेट के दुष्प्रभावों पर शोध कर रही है। शोध के आंकड़े भी इस बात की ओर इशारा करते हैं कि जिन देशों में टोटल फर्टिलिटी रेट 2.1 से कम हुई या जहां सिंगल चाइल्ड पॉलिसी लागू हुई वहां पर युवा आबादी घटने लगी जिसके चलते उन देशों का आर्थिक विकास बाधित हुआ है। चीन जैसे देश को भी अपनी जनसंख्या नीति में बदलाव करना पड़ा है। फिनलैंड जैसे देश की वर्ष 1998 में टी एफ आर एक दशमलव चार पहुंच गई जो कि 1988 में एक दशमलव आठ पांच थी तो वहां की सरकार को बच्चे के जन्म केलिए कुछ सो यूरो से लेकर दस हजार यूरो तक का इंसेंटिव देना पड़ रहा है।बढ़ती हुई जनसंख्या देश के विकास में हमेशा बाधक नहीं अपितु साधक ही होती है।
गिरती हुई टोटल फर्टिलिटी रेट के सामाजिक दुष्प्रभावों की चिंता करते हुए स्वदेशी जागरण मंच प्रांत कार्यालय प्रमुख रोहितास पटेल ने बताया कि गिरती हुई प्रजनन दर रिश्तों को समाप्त करती जा रही है। किसी परिवार में दो लड़के व दो लड़कियां होने से चाचा-चाची, ताऊ-ताई मौसा- मौसी, मामा-मामी, बुआ-फूफा जैसे सभी पारिवारिक रिश्ते मिलते हैं। लेकिन इनमें से कम बच्चे होने पर रिश्ते समाप्त हो जाते है। इसके चलते आने वाले समय में कई लोगों को तो अपने खून के रिश्ते भी इस धरती पर नहीं मिल पाएंगे।
घटती प्रजनन दर के पारिवारिक दुष्प्रभाव के बारे में बताते हुए प्रांत प्रचार प्रमुख मिथिलेश झा ने कहा कि आजकल देखने में आ रहा है कि कई परिवारों में एक दो बच्चे होते हैं वह भी उच्च आय अर्जित करने के लिए शहर से बाहर चले जाते हैं। ऐसे में बुजुर्ग माता-पिता भगवान के भरोसे ही छोड़ दिए जाते हैं जिनका बुढ़ापा बड़ा कष्ट में गुजर रहा होता है।
प्रेस वार्ता में प्रश्नों के उत्तर देते हुए डॉ. धर्मेंद्र दुबे ने कहा कि जिन संस्कृतियों में टोटल फर्टिलिटी रेट 2.1 से कम है उन्हें विशेष चिंता करने की आवश्यकता है। अतः अब समाज में यह नारा जाना चाहिए कि “दो या तीन बच्चे- समाज व राष्ट्र के लिए होते अच्छे”। हां यह भी सत्य है कि दो या तीन से अधिक संतान होना देश की जनसंख्या वृद्धि केलिए खतरनाक साबित हो सकती है।