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हरेली के मौके पर गांव का पूरा परिवेश नजर आ रहा है।


गौपालक अपने साथ जब गौवंश को लेकर चलते हैं और जिस सजधाज के साथ वे नजर आते हैं। वो यहां नजर आती है।
ये एक पूरी संस्कृति की झलक है जो अपनी खेती और पशुधन से आगे बढ़ी।
प्रकृति के प्रति अपने इस ऋण और प्रकृति की इस असीम उदारता के लिए छत्तीसगढ़िया लोग हरेली का त्योहार मनाते हैं।
यह त्योहार जीवन के उल्लास का प्रतीक है।
यह जीवन में शुभ संकल्पों को लेने का त्योहार है।
इस दिन कृषिप्रधान संस्कृति पूरी उम्मीद से आगे बढ़ती है कि उनके पूजा पाठ से अच्छी खेती होगी।
यह उल्लास का पर्व भी है। इसलिए गेड़ी है। पिट्ठूल है। और भी खेल हैं।

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