(आज देश में लोकतंत्र और संविधान खतरे में हैं। लोकतंत्र की बहाली का संघर्ष कई स्तर पर जारी है। इस संघर्ष में शामिल लगभग 10 युवा फर्जी मुकदमों में जेल में कैद हैं।
लोकतंत्र की बहाली के संघर्ष के बीच आज जे पी की पुण्यतिथि की तिथि है जिन्होंने आजादी के आंदोलन के दौरान तो जेल काटी ही, आजाद हिंदुस्तान में भी इमरजेंसी के दौरान जेल में रहे। आज की जे पी का संघर्षमय जीवन हमें प्रेरणा देता है और भविष्य में भी देता रहेगा।)
लोकनायक जयप्रकाश नारायण देश के शायद एकमात्र ऐसे नेता कहे जा सकते हैं जिन्होंने हिंसा से अहिंसा तक, मार्क्सवाद से संपूर्ण क्रांति तक, अमरीका से मुसहरी तक विवाहित रहते हुए ब्रह्मचर्य अपनाने तक की यात्रा अपने जीवन काल में कुछ इस तरह पूरी की जिसकी मिसाल कोई दूसरी नहीं मिलती।
जेपी सिताबदियारा, बलिया, उत्तरप्रदेश में पैदा हुए। प्राथमिक शिक्षा लेने के बाद विदेश में उच्च शिक्षा हासिल की। ज्यादातर आजादी के आंदोलन के नेता ऑक्सफोर्ड में पढ़े लेकिन जेपी ने अमरीका चुना। जेपी ने जिस आर्थिक कठिनाई से पढ़ाई की ऐसी पढ़ाई देश के किसी दूसरे राष्ट्रीय नेता ने नहीं की। उन्होंने कसाई घर में काम किया, खेतों में, रेस्टोरेंट में, पॉलिस करने यानी ऐसा कोई भी काम जिसे भारतीय निम्न दृष्टि से देखते हैं, वैसे काम करके उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की।
गांधीजी के पसंद से कम उम्र में शादी प्रभावती जी के साथ हो गई थी। विदेश से जब लौटे तो प्रभावती जी ब्रह्मचर्य धारण कर चुकी थी। प्रभावती जी – गांधीजी में ब्रह्मचर्य को लेकर काफी बहस हुई। अंततः भरी जवानी में जेपी ने ब्रह्मचर्य को स्वीकार किया ।
गांधी जी के आश्रम में रहने वाली मुंह बोली बेटी होने के कारण अमरीका से लौटने पर पूरी कांग्रेस ने उन्हें दामाद के मान सम्मान से नवाजा। सभी के साथ घनिष्ठ रिश्ते बनाने का मौका मिला।
आए थे अमरीका पढ़ने लेकिन मार्क्सवादी बनकर लौटे थे जेपी। स्वतंत्रता आंदोलन के प्रभाव में राष्ट्रीय आंदोलन में कूदे, जेल पहुंचे तो समाजवादी आंदोलन के शीर्षस्थ नेताओं के साथ रहे। नासिक जेल में कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के गठन की योजना बना डाली, देवली जेल में रहे। हजारीबाग जेल से भागे, नेपाल में रहे। 1942 के आंदोलन के हीरो के तौर पर देश ने उन्हें सराहा। लाहौर जेल में यातनाएं झेली, तमाम किस्म के मतभेदों के बावजूद जेपी को गांधी का खुलकर समर्थन मिला। आजादी मिली, विभाजन का पुरजोर विरोध किया। कांग्रेस सोशलिस्ट पार्टी में कांग्रेस शब्द हटाने का प्रस्ताव पारित कराया और सोशलिस्ट पार्टी के बाद पहले आम चुनाव में पार्टी का नेतृत्व किया। कहा जाता है कि 1942 के आंदोलन के कारण जेपी की चमक की तुलना जवाहरलाल नेहरू से की जाने लगी थी। पहले चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी को 10.53 प्रतिशत वोट मिले तथा लोकसभा में बहुत कम सीटें मिली। जेपी निराश हुए। आचार्य कृपलानी जी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी तथा फारवर्ड ब्लॉक से सोशलिस्ट पार्टी को मजबूत पार्टी और मजबूत विपक्ष को खड़ा करने का फैसला किया।
आजादी मिलने के बाद जवाहरलाल नेहरू प्रधानमंत्री बने । जल्दी ही सरदार पटेल का देहांत हो गया। जेपी को कांग्रेस कमेटी का अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव आया । नेहरू ने आचार्य नरेंद्र देव को वरिष्ठ बतलाते हुए उनका नाम प्रस्तावित किया अंततः राजेंद्र प्रसाद जी अध्यक्ष बन गए। सरकार में शामिल होने का बाद में फिर प्रस्ताव आया। जेपी ने 14 सूत्रीय प्रस्ताव भेजा जिसे जवाहरलाल नेहरू ने नामंजूर कर दिया। डॉ राममनोहर लोहिया ने जब पहली बार सरकार बनी तथा केरल तमिलनाडु के विलय को लेकर हुए आंदोलन में पुलिस गोली चालन में दो लोग मारे गए तब अपनी ही सरकार के मुख्यमंत्री से डॉ लोहिया ने इस्तीफा मांगा लेकिन पूरी पार्टी अलग खड़ी हो गई। विशेष अधिवेशन हुआ । लोहिया अलग-थलग पड़ गए। उन्हें पार्टी से निकाल दिया गया। लोहिया ने स्वतंत्र तौर पर सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया तथा जेपी प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के नेता बने रहे। जेपी पहले ही चुनावी व्यवस्था से हताश थे । धीरे धीरे वे सक्रिय राजनीति से अलग होने लगे। जेपी की मुलाकात गांधी जी से विनोबाजी के यहां हुआ करती थी। जब विनोबाजी ने भूदान – ग्रामदान का काम शुरू किया, जेपी उस काम के साथ जुड़ गए।
धीरे धीरे वैचारिक तौर पर उन्हें हिंसा की जगह शांति की उपयोगिता लगने लगी। विनोबा जी के साथ उनका भूदान का जो अनुभव पाया उसने जेपी को भाव विह्वल कर दिया। वे समाजवाद की जगह सर्वोदय की बात करने लगे परन्तु बीच बीच में सोशलिस्टों के सम्मेलनों में जाते थे ।औपचारिक तौर पर 1957 में उन्होंने स्वयं को अलग कर लिया। पूरी तरह सर्वोदयी रहकर सर्व सेवा संघ का काम करने लगे। रचनात्मक कार्यों में उनका मन लगने लगा। नक्सलियों के प्रभाव को मुजफ्फरनगर के मुसहरी ब्लॉक में काम करने के लिए उन्होंने काम शुरू किया। साथ ही एक-एक गांव से जाकर एक-एक घर में जाकर सर्वोदय के सिद्धांत को समझाया करते थे। वे नये मनुष्य, नया समाज के निर्माण में जुटे रहे। डॉ लोहिया और जेपी अलग अलग रास्ते पर चल रहे थे परन्तु दोनों का एक दूसरे के प्रति अथाह स्नेह और सम्मान बना रहा। जब लोहिया की तबीयत खराब होने की ख़बर मिली तब वे तुरंत दिल्ली अस्पताल पहुंच गए तथा मृत्यु होने तक उनके नजदीक बने रहे।
डॉ. लोहिया जेपी के बारे में बार-बार कहा करते थे कि जयप्रकाश ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति है जो देश को हिला सकते हैं बशर्ते वे स्वयं अपनी जगह अडिग होकर खड़े रहे। 1971 में जब शेख मुजीबुर रहमान ने जेपी का सहयोग और समर्थन मांगा तब वे एक बार फिर सक्रिय हो गए। पूरी दुनिया में बांग्लादेश के लिए समर्थन जुटाने लगे। अंततः वे भारत सरकार को हस्तक्षेप करने के लिए मनवाने में सफल रहे। जो श्रेय बांग्लादेश के गठन के लिए इंदिरा गांधी को दिया जाता है उसमें जेपी की अति महत्वपूर्ण भूमिका थी। जिसे नजरअंदाज किया जाता है । उसी तरह कश्मीर में जब शेख अब्दुल्ला को भारत सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया, तब उन्होंने खुलकर विरोध किया तथा कश्मीर में जनमत संग्रह का समर्थन किया जो कि भारत सरकार की लिखित प्रतिबद्धता थी । लेकिन जब पाकिस्तान ने हमला किया तब जेपी की राय बदल गई। तब वे कश्मीर की स्वायत्तता की बात करने लगे लेकिन सदा शेख अब्दुल्ला के पक्षधर रहे। नेपाल में राणा शाही और राजशाही को समाप्त करने में जेपी की महत्वपूर्ण भूमिका रही। नागालैंड में जब विद्रोह को कुचलने का काम भारत सरकार ने किया तब उन्होंने खुलकर भारत सरकार का विरोध किया। नागालैंड में शांति बहाली करने तथा भारत का अंग बने रहने के लिए जेपी ने भारत सरकार और आंदोलनकारियों के बीच समझौता कराया था।
गुजरात के छात्र आंदोलन की आग जब बिहार पहुंची तब जेपी ने छात्रों का साथ देने का मन बनाया। परिस्थिति इस तरह की बनते चली गई कि छात्र आंदोलन का विस्तार पूरी तरह पूरे देश में हो गया। छात्र आंदोलन में जेपी पूरी तरह डूब गए। मार्क्सवाद को तिलांजलि देने के बाद जेपी ने सर्वोदय के जिन सिद्धांतों को अपनाया था उससे आगे बढ़कर छात्र आंदोलन के माध्यम से उन्होंने संपूर्ण क्रांति का आह्वान किया। इमरजेंसी लगा दी गई। इंदिरा गांधी जिसे जेपी बेटी की तरह माना करते थे, ने उन्हें जेल में कैद करवा दिया। जेपी के दबाव में तीन विपक्षी पार्टियां, संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी, भारतीय क्रांति दल जनसंघ और कांग्रेस(ओ) ने जनता पार्टी का गठन किया। देश में लोकतंत्र बहाल हुआ। ढाई साल सरकार चली लेकिन जेपी ने संपूर्ण क्रांति का जो सिद्धांत गढ़ा था, जे पी का सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, आध्यात्मिक क्रांति का सपना अभी पूरा होना बाकी है ।
जेपी का देहांत 8 अक्टूबर 1979 को हो गया। भारतीय समाजवादी आंदोलन सर्वोदय आंदोलन और संपूर्ण क्रांति का नेतृत्वकर्ता हमारे बीच नहीं रहा लेकिन उनका समाजवादी विचार जिंदा है, फल फूल रहा है ।
जे पी ने यह साबित किया कि बिना चुनाव लड़े भी समाज परिवर्तन की धारा को मजबूती दी जा सकती है।
जनशक्ति से सरकारें भी बदली जा सकती है।
जे पी आपके सपनों को! मंजिल तक पहुंचाएंगे!!
डॉ सुनीलम पूर्व विधायक ( सपा)