ॐ शांति! छत्तीसगढ़ के राज्यपाल रमन डेका जी, राज्य के लोकप्रिय एवं ऊर्जावान मुख्यमंत्री विष्णु देव साय जी, राजयोगिनी बहन जयंती जी, राजयोगी मृत्युंजय जी, सभी ब्रह्मकुमारीज बहनें, यहां उपस्थित अन्य महानुभाव, देवियों और सज्जनों!
आज का दिन बहुत विशेष है। आज हमारा छत्तीसगढ़ अपनी स्थापना के 25 साल पूरे कर रहा है। छत्तीसगढ़ के साथ ही झारखंड और उत्तराखंड की स्थापना के भी 25 वर्ष पूरे हुए हैं। आज देश के और भी कई राज्य अपना स्थापना दिवस मना रहे हैं। मैं इन सभी राज्यों के निवासियों को स्थापना दिवस की बहुत-बहुत बधाई देता हूं। राज्य के विकास से देश का विकास, इसी मंत्र पर चलते हुए हम भारत को विकसित बनाने के अभियान में जुटे हैं।
साथियों,
विकसित भारत की इस अहम यात्रा में ब्रह्मकुमारीज जैसी संस्था की बहुत बड़ी भूमिका है। मेरा तो सौभाग्य रहा है कि, मैं बीते कई दशकों से आप सबके साथ जुड़ा हुआ हूं। मैं यहां अतिथि नहीं हूं, मैं आप ही का हूं। मैंने इस आध्यात्मिक आंदोलन को वट वृक्ष की तरह विस्तार लेते देखा है। 2011 में अहमदाबाद में ‘फ्यूचर ऑफ पावर’, वो कार्यक्रम, 2012 में संस्था की स्थापना के 75 वर्ष, 2013 में प्रयागराज का कार्यक्रम, आबू जाना हो या गुजरात में कार्यक्रम में जाना हो, ये तो मेरे लिए बहुत रूटीन सा हो गया था। दिल्ली आने के बाद भी, आजादी के अमृत महोत्सव से जुड़ा अभियान हो, स्वच्छ भारत अभियान हो, या फिर ‘जल जन अभियान’ इन सब से जुडने का मौका हो, मैं जब भी आपके बीच आया हूँ, मैंने आपके प्रयासों को बहुत गंभीरता से देखा है। मैंने हमेशा अनुभव किया है, यहां शब्द कम, सेवा ज्यादा है।
साथियों,
इस संस्थान से मेरा अपनापन, खासकर, जानकी दादी का स्नेह, राजयोगिनी दादी हृदय मोहिनी जी का मार्गदर्शन, ये मेरे जीवन की विशेष स्मृतियों का हिस्सा है, मैं बहुत भाग्यवान रहा। मैं शांति शिखर की इस संकल्पना में उनके विचारों को साकार होते हुए, मूर्तिमंत होते हुए देख रहा हूँ। “शांति शिखर– academy for a peaceful world. मैं कह सकता हूँ, आने वाले समय में ये संस्थान विश्व शांति के सार्थक प्रयासों का प्रमुख केंद्र होगा। मैं आप सभी को, और देश विदेश में ब्रह्मकुमारीज परिवार से जुड़े सभी लोगों को इस सराहनीय कार्य के लिए अनेक-अनेक शुभकामनाएँ देता हूँ।
साथियों,
हमारे यहाँ कहा जाता है- आचारः परमो धर्म, आचारः परमं तपः। आचारः परमं ज्ञानम्, आचारात् किं न साध्यते॥ अर्थात्, आचरण ही सबसे बड़ा धर्म है, आचरण ही सबसे बड़ा तप है और आचरण ही सबसे बड़ा ज्ञान है। आचरण से क्या कुछ सिद्ध नहीं हो सकता? यानी, बदलाव तब होता है, जब अपने कथन को आचरण में भी उतारा जाए। और यही ब्रह्मकुमारीज संस्था की आध्यात्मिक शक्ति का स्रोत है। यहाँ हर बहन पहले कठोर तप और साधना में खुद को तपाती है। आपका तो परिचय ही विश्व और ब्रह्मांड में शांति की प्रयासों से जुड़ा है। आपका पहला सम्बोधन ही है- ॐ शांति! ॐ अर्थात्, ब्रह्म और सम्पूर्ण ब्रह्मांड! शांति अर्थात्, शांति की कामना! और इसीलिए, ब्रह्मकुमारीज़ के विचारों का हर किसी के अन्तर्मन पर इतना प्रभाव पड़ता है।
साथियों,
विश्व शांति की अवधारणा, ये भारत के मौलिक विचार का अधिष्ठान है, हिस्सा है। ये भारत की आध्यात्मिक चेतना का प्रकट रूप है। क्योंकि, हम वो हैं, जो जीव में शिव को देखते हैं। हम वो हैं, जो स्व का विस्तार सर्वस्व तक करते रहते हैं। हमारे यहाँ हर धार्मिक अनुष्ठान जिस उद्घोष के साथ पूरा होता है, वो उद्घोष है- विश्व का कल्याण हो! वो उद्घोष है- प्राणियों में सद्भावना हो! ऐसी उदार सोच, ऐसा उदार चिंतन, विश्व कल्याण की भावना का आस्था से ऐसा सहज संगम, ये हमारी सभ्यता, हमारी परंपरा का सहज स्वभाव है। हमारा अध्यात्म हमें सिर्फ शांति का पाठ ही नहीं सिखाता, वो हमें हर कदम पर शांति की राह भी दिखाता है। आत्म संयम से आत्मज्ञान, आत्मज्ञान से आत्म-साक्षात्कार और आत्म-साक्षात्कार से आत्मशांति। इसी पथ पर चलते हुए शांति शिखर अकैडमी में साधक वैश्विक शांति का माध्यम बनेंगे।
साथियों,
ग्लोबल पीस के मिशन में जितनी अहमियत विचारों की होती है, उतनी ही बड़ी भूमिका व्यवहारिक नीतियों और प्रयासों की भी होती है। भारत इस दिशा में आज अपनी भूमिका पूरी ईमानदारी से निभाने का प्रयास कर रहा है। आज दुनिया में कहीं भी कोई संकट आता है, कोई आपदा आती है, तो भारत एक भरोसेमंद साथी के तौर पर मदद के लिए आगे आता है, तुरंत पहुंचता है। भारत First Responder होता है।
साथियों,
आज पर्यावरण से जुड़ी चुनौतियों के बीच भारत पूरे विश्व में प्रकृति संरक्षण की प्रमुख आवाज बना हुआ है। बहुत आवश्यक है कि हमें प्रकृति ने जो दिया है, हम उसका संरक्षण करें, हम उसका संवर्धन करें। और ये तभी होगा, जब हम प्रकृति के साथ मिलकर जीना सीखेंगे। हमारे शास्त्रों ने, प्रजापिता ने हमें यही सिखाया है। हम नदियों को माँ मानते हैं। हम जल को देवता मानते हैं। हम पौधे में परमात्मा के दर्शन करते हैं। इसी भाव से प्रकृति और उसके संसाधनों का उपयोग, प्रकृति से केवल लेने का भाव नहीं, बल्कि उसे लौटाने की सोच, आज यही way of life दुनिया को सेफ फ्यूचर का भरोसा देता है।
साथियों,
भारत अभी से भविष्य के प्रति अपनी इन जिम्मेदारियों को समझ भी रहा है, और उन्हें निभा भी रहा है। One Sun, One World, One Grid जैसे भारत के Initiatives, One Earth, One Family, One Future का भारत का विज़न, आज दुनिया इसके साथ जुड़ रही है। भारत ने geopolitical boundaries से अलग, मानव मात्र के लिए मिशन LiFE भी शुरू किया है।
साथियों,
समाज को निरंतर सशक्त करने में ब्रह्मकुमारीज़ जैसी संस्थाओं की अहम भूमिका है। मुझे विश्वास है, शांति शिखर जैसे संस्थान भारत के प्रयासों को नई ऊर्जा देंगे। और इस संस्थान से निकली ऊर्जा, देश और दुनिया के लाखों करोड़ों लोगों को विश्व शांति के इस विचार से जोड़ेगी। प्रधानमंत्री बनने के बाद दुनिया में मैं जहां-जहां गया हूं, एक भी देश ऐसा नहीं होगा, जहां एयरपोर्ट हो या कार्यक्रम का स्थान हो, ब्रह्मा कुमारीज के लोग मुझे मिले ना हो, उनकी शुभकामनाएं मेरे साथ ना रही हो। शायद ऐसी एक भी घटना नहीं होगी। और इसमें मुझे अपनेपन का तो एहसास होता है, लेकिन आपकी शक्ति का भी अंदाज आता है, और मैं तो शक्ति का पुजारी हूं। आपने मुझे इस पवित्र शुभ अवसर पर आपके बीच आने का अवसर दिया। मैं आपका बहुत-बहुत आभारी हूं। लेकिन जिस सपनों को लेकर के आप चले हैं, वे सपने नहीं है। मैंने हमेशा अनुभव किया है, आपके वो संकल्प होते हैं, और मुझे पूरी श्रद्धा है कि आपके संकल्प पूरे ही होंगे। इसी भाव के साथ, मैं एक बार फिर आप सभी को शांति शिखर-एकेडमी फॉर ए पीसफुल वर्ल्ड के लिए बहुत-बहुत बधाई देता हूँ। बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं। बहुत-बहुत धन्यवाद! ॐ शांति!








