पद नहीं कद में काफी बड़े हैं कमलनाथ, क्‍या परिवार और प्रतिष्‍ठा को भेद पायेगी बीजेपी?
छिंदवाड़ा: अपने और गैर के बीच छिड़ी जंग, छिंदवाड़ा को क्षेत्र नहीं परिवार मानते हैं कमलनाथ

विजया पाठक, एडिटर, जगत विज़न
अपनी परंपरागत छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में कमलनाथ अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी जंग लड़ रहे हैं क्‍योंकि एक तरफ जहां बीजेपी का पूरा कुनबा कमलनाथ को पटकनी देने पर उतारू है वहीं दूसरी तरफ कमलनाथ अपने जीवन भर की सेवा, समर्पण और अपनत्‍व के दम पर अकेले मैदान में हैं। यह जंग ही बीजेपी का समूचा कुनबा और अकेले कमलनाथ के बीच है। आज चुनाव में पूरे देश में भाजपा ने सबसे ज्‍यादा ताकत छिंदवाड़ा में लगाई है ताकि कमलनाथ का अजेय किले को वह ध्‍वस्‍त कर पाये। पर जनता के सामने भाजपा के पास कमलनाथ के छिंदवाड़ा मॉडल के खिलाफ कोई मुददा नहीं है। चाहे भाजपा अध्‍यक्ष जेपी नडडा हो या अमित शाह हो। सब कमलनाथ को हराने के लिए जनता से आग्रह कर रहे हैं पर यह नहीं बता पा रहे है कि छिंदवाड़ा की जनता आखिर कमलनाथ को क्‍यों वोट नहीं दे, छि़दवाड़ा के अद्धितीय विकास मॉडल चाहे आधारभूत संरचना हो, कौशल विकास से माध्‍यम से रोजगार उपलब्‍ध कराने का हो, चिकित्‍सा, शिक्षा, किसानी, सभी मुददों पर कमलनाथ के छिंदवाड़ा मॉडल का कोई तोड़ नही है। पिछले 45 वर्षों से कमलनाथ ने छिंदवाड़ा में राजनीति नहीं की बल्कि बेटे की तरह उसकी सेवा की। इस मुददे का भी कोई तोड़ भाजपा के पास नहीं है। यहां तक कि कमलनाथ के कुनबे के खास लोगों को तोड़कर भी किसी से भी भाजपा उनके खिलाफ वक्‍तव्‍य नहीं दिला पायी। छिंदवाड़ा की लड़ाई अब सिर्फ और सिर्फ कमलनाथ और भाजपा के बीच रह गई है।
सियासत की इस जंग में जहां बीजेपी के लिए यह चुनाव हार-जीत तक सीमित है वहीं कमलनाथ परिवार के लिए यह प्रतिष्‍ठा का सवाल है। मतलब साफ है कि छिंदवाड़ा को कमलनाथ का गढ़ ऐसे ही नहीं कहा जाता है। यह क्षेत्र उनका परिवार है और इस परिवार में सेंध मारने के लिए बीजेपी ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। वर्तमान विधायकों को तोड़कर अपने पाले में किया है। चुनाव प्रचार में कई गलत-सलत भ्रांतियां फैलायी जा रही हैं। लेकिन मौजूदा हालातों को देखकर लग रहा है कि बीजेपी के ये मंसूबे इस बार भी कामयाब होते नहीं दिख रहे हैं। तमाम कोशिशों के बावजूद भी बीजेपी इस किले को भेदने में सफल नहीं होगी।

कमलनाथ को नही सत्‍ता का मोह
कमलनाथ ऐसे राजनीतिक शख्‍स हैं, जिन्‍हें कभी भी सत्‍ता का मोह नहीं रहा। राजनीति को सेवा का मार्ग मानने वाले कमलनाथ के लिए राजनीति केवल मात्र समाज की सेवा है। यही कारण है कि वह सत्‍ता में रहे या न रहे हो उन्‍होंने समाज के कल्‍याण की मूल भावना को पीछे नहीं छोड़ा है। हम सबको मध्‍यप्रदेश का वो वाक्‍या याद है जब प्रदेश में उनकी सरकार गिराई गई थी। कमलनाथ चाहते तो उनकी सरकार भी नही गिरती और मुख्‍यमंत्री भी बने रहते। लेकिन उन्‍होंने कभी भी अपने सिद्धांतों और उसूलों से समझौता नहीं किया। उनका मानना है कि सिद्धांतों से समझौता करने से बजाय अच्‍छा है सत्‍ता का ही त्‍याग कर देना।
मैं कमलनाथ को व्‍यक्गित और राजनीतिक रूप से काफी समय से जानती हूँ। जहां तक मैंने देखा है कि राजनीति उनके लिए पद या लालसा का जरिया नही है। वह तो केवल सेवा, समर्पण मात्र है। प्रदेश में जब उनकी 18 महिनों की सरकार थी तब मैंने अपने प्‍लेटफार्म पर उनकी सरकार की नीतियों और फैसलों पर खूब छापा और इस विषयों पर उनसे चर्चाएं भी हुई। उन्‍होंने कभी भी मुझसे छापने का मना नही किया। उनका कहना था जो मुझे अच्‍छा लग रहा है वो मैं कर रहा हूँ और जो आपको अच्‍छा लग रहा है यह आप कर रही हैं।
अभी हाल ही में मैंने छिंदवाड़ा लोकसभा क्षेत्र में चुनावी मुआयना किया था। कई आदिवासी क्षेत्रों में मेरा जाना हुआ। लोगों से बातचीत हुई। इस दौरान आदिवासी लोगों का बस यही कहना था कि छिंदवाड़ा में कमलनाथ के अलावा हम किसी को ज्‍यादा नहीं जानते हैं। उन्‍होंने हमारे क्षेत्र में जो काम किये हैं वह किसी ने नहीं किये हैं। आपको बता दें कि इस क्षेत्र में आदिवासी वोटर 36 प्रतिशत हैं और यही हारजीत का फैसला करते हैं।

आखिरी सांस तक छिंदवाड़ा की सेवा करता रहूंगा- कमलनाथ
छिंदवाड़ा में नौ बार के सांसद और 15 महीने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहे कमलनाथ वाकई इस बार अपने राजनीतिक जीवन की सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा का सामने कर रहे हैं। दरअसल यहां नकुलनाथ तो बस चेहरा हैं, चुनाव तो कमलनाथ लड़ रहे हैं। यह उनके भाषण से समझ सकते हैं- जो बच्चे सातवीं तक पढ़े हैं] उनके लिए भी मैंने रोजगार की व्यवस्था की है… मैंने स्किल डेवलपमेंट सेंटर खुलवाए… मैंने छिंदवाड़ा में 6000 किलोमीटर ग्रामीण सड़कें बनवाई… हाईवे बनवाए। आखिरी में वे ये कहना भी नहीं भूलते हैं कि मैं आखिरी सांस तक छिंदवाड़ा की सेवा करता रहूंगा। आपको बात दें कि नकुलनाथ ही वह एकमात्र सांसद रहे हैं जिन्‍होंने अपनी सांसद निधि का पूरा उपयोग किया है और सारा पैसा अपने क्षेत्र के विकास में खर्च किया है। इधर, भाजपा ने अभी नहीं तो कभी नहीं की रणनीति के तहत अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। 2019 में मोदी लहर के बावजूद प्रदेश की 29 सीटों में से छिंदवाड़ा को भाजपा जीत नहीं पाई थी। 2023 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने प्रदेश के हर कोने में बेहतर प्रदर्शन किया, लेकिन छिंदवाड़ा की सातों सीटें कांग्रेस के पास चली गईं। ये ऐसे फैक्ट हैं जो भाजपा को सताते रहे हैं। इसलिए, भाजपा यहां एक साथ कई मोर्चे पर काम कर रही है।

अपने क्षेत्रवासियों से रहा है विशेष मोह
दिसम्‍बर 2018 में जब प्रदेश में कमलनाथ सरकार बनी थी। वे मुख्‍यमंत्री थे। उस समय उनके शासकीय निवास पर जनता दरबार लगाया जाता था। मैंने देखा था कि जनता दरबार में सबसे पहले कमलनाथ छिंदवाड़ा क्षेत्र के लोगों से मिलते थे और उनकी समस्‍याओं को सुनते थे। उसके बाद ही दूसरे अन्‍य लोगों से मिलते थे। बकायदा बोली लगाई जाती थी कि छिंदवाड़ा से आप लोग पहली पंक्ति में आये। इस तरह का कार्य उनका अपने क्षेत्र के लोगों के प्रति स्‍नेह और लगाव को दर्शाता है। आज भी उनके मन में अपने क्षेत्र के लोगों के प्रति वही प्रेम और वही अपनापन है। अपने क्षेत्र के विकास और उन्‍नति के लिए अनेक काम किये हैं। युवाओं, महिलाओं, गरीबों के कल्‍याण के लिए अनेकों स्‍टार्ट अप खड़े किये हैं।

क्या “छिंदवाड़ा मॉडल” के जनक का साथ देगी छिंदवाड़ा की जनता?
भावुक हो जाते हैं नकुलनाथ- कमलनाथ जी ने अपनी पूरी जवानी छिंदवाड़ा के विकास के लिए समर्पित कर दी। मैं भी छिंदवाड़ा के विकास के लिए अपनी पूरी जवानी समर्पित करने को तैयार हूं। छिंदवाड़ा में जब ये वादा करते हैं तो थोड़े इमोशनल हो जाते हैं। इसकी वजह भी है- पहली बार किसी चुनाव में उनके अपने कुछ खास लोग साथ नहीं हैं। विधायक, महापौर, पूर्व मंत्री, पार्षद। बरसों का साथ तो छोड़ा ही, अब ये उनके खिलाफ ही भाजपा का झंडा उठा रहे हैं। आपको बता दें कि प्रदेश में कांग्रेस से इतर होकर कमलनाथ चुनाव लड़ रहे हैं। किसी भी नेता ने छिंदवाड़ा में कोई सभा नहीं की। कमलनाथ कांग्रेस को पीछे छोड़कर अपने वोट बैंक को लेकर आगे बढ़ रहे हैं। यहां तक कि राहुल गांधी पास के बालाघाट जिले में आये लेकिन छिंदवाड़ा नही आये। वहीं, भाजपा ने पूरी ताकत लगा दी है। हम जानते हैं कि यहां कांग्रेस की नहीं, कमलनाथ की व्यक्तिगत जीत होती थी। कमलनाथ के संबंध लोगों से बहुत गहरे हैं।